
जन जन में स्नेहाधार बहे व्यवहार प्रेम संस्कार बहे है श्रद्धा संग सत्कार यही सर्व धर्म का सार यही है यह नाम प्यार का समझा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी। न साथ ले कुछ आये हम न साथ कुछ ले जायेंगे हम प्यार से सबको जोड़ चलें नफरत से न तोड़ चलें है सत्य यही सुलझा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी। होता प्यार से अनुबंध स्थापित करता यह संबंध व्यापित दो दिल मिलन श्रृंगार प्यार का करता निर्माण घर परिवार का यह प्रेम उद्गार जगा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी। संतति अलब्ध लाभ प्यार का है भविष्य यह भाल संसार का वरदान कुदरत का यह अलौकिक नारी का सुखद आनंद मातृत्व ममता का भाव बहा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी। हो अभिवादनशील संतति मातु पिता में हो अति भक्ति हो ध्यान, कर्तव्य ज्ञान का देव, पितर ,ऋषि ॠण का सेवा का भाव जगा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी। नफरत फैलाती दुश्मनी तोड़ फोड़ आगजनी हों उत्तरदायी देश प्रति रखें सुरक्षित हो यह मति निष्ठा का भाव जगा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी। हो सहानभूति गरीबों प्रति धन घमंड न हो अति प्यार करें हम मानवता से नफरत करें हम दुष्टता से दया का सागर बहा दे लेखनी नतमस्तक हूं तूं ही रक्षिणी।