मर्ज़-ए-इश्क-ए यार खुद में पाले हुए हैं
उसके दीदार से नजरों में उजाले हुए हैं !
जब-जब तन्हाई के सहराओं में वो भटका
तब-तब मेरी मुहब्बत के उसे प्याले हुए हैं !
है नूर उसका ऐसा भुलाया जो न जाता
उसीके चराग़ों से उजाले हुए हैं !
है रंज-ओ-ग़म अज़ीज़ इस कदर मुझे उसका
कि जश्न तमाम सोगों के साये हुए हैं !
इल्म-ए-जनाज़ा-ए मुहब्बत तो था मुझे
पर मौत के अंदाज़ निराले हुए हैं !
छुआ जहाँ-जहाँ था उसकी नज़रों ने दिल को
नासूर बनके आज वहीं छाले हुए हैं !
उसी नजर से देखले मुझे मौत से पहले
बस इतनी सी हसरत कहीं पाले हुए हैं ………….