
कहते हैं कि लड़के रोते नहीं
जज़्बात उनमें कुछ होते नहीं
दर्द भी भला कहाँ होता कहीं
कमजोर कभी हो सकते नहीं
तड़पते वो भी हैं जब कहीं
बिछड़ता है कभी अपना कोई
छिपा दर्द बस आँखों में कहीं
भरते वो भी वेदना के घूँट कई
कहते हैं लड़के बेघर होते नहीं
जिम्मेदारी का बोझ उठाके वही
निकल पड़ते हैं मीलों दूर कहीं
दिलाने अपनों को खुशियाँ नई
जरूरतें सभी की पूरी करने सभी
लगाते हैं दाँव पर वो खुशियाँ कई
हाथ करने हैं पीले बहना के अभी
करें न फिक्र अपनी छत की कभी
कहते हैं लड़के थकते नहीं
हैं मर्द वो कभी झुकते नहीं
संघर्षों से गर थक जाएं यदि
मान नहीं सकते हार कभी
मिल जाए स्नेह संबल कहीं
ले अवलंब बस थमते वहीं
बहा वेदना का समंदर वहीं
चलते संघर्षों से भिड़ने तभी