देश में 2014 से 2016 के बीच एक लाख से ज्यादा बच्चे लापता हो गए. जिनमें 70 हजार लड़कियां शामिल हैं. इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के लापता होने से बड़े सवाल उठ रहे हैं. लोकसभा में राजस्थान की चूरू सीट से बीजेपी सांसद राहुल कस्वां के सवाल पर इस बात का खुलासा हुआ है. दरअसल, सांसद ने देश में लापता बच्चों की कुल संख्या के राज्यवार आंकड़े मांगे थे. यह भी पूछा था कि क्या अधिकारियों के उत्पीड़न के शिकार बच्चों के मामले सामने आए हैं.
लोकसभा में 26 जुलाई को महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने अपना जवाब दिया. उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हवाले से 2014-2016 के दौरान गुम हुए बच्चों के आंकड़े जारी किए. उन्होंने यह भी बताया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश में बाल श्रमिकों के आंकड़े नहीं रखता.
स्मृति ईरानी ने बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को किशोर न्याय अधिनियम 2015 (जेजे एक्ट) की निगरानी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. जेजे अधिनियम के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर भी है. नियमावली के अनुसार अगर बाल देखरेख संस्था में काम करने वाले किसी व्यक्ति के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई जाती है, तो ऐसे व्यक्ति को आपराधिक मामले को लंबित रहने के दौरान बच्चों के साथ सीधे काम करने से प्रतिबंधित किया जाएगा. जेजे अधिनियम बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए कठोर दंड का प्रावधान भी करता है. अगर बच्चों के संरक्षण से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अपराध करता है तो उसे पांच साल की सजा और पांच लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है.