नीरज कुमार द्विवेदी – नव वर्ष – साप्ताहिक प्रतियोगिता

देखो देखो आया है नूतन मंगल नव वर्ष नया सब के मन में छाया है देखो इक नव हर्ष नया नई उमंगे नई तरंगे जागृत हुई है जन जन में दिल में छाई नई बहारे हर मन में उत्कर्ष है मधुपों ने गुंजार किया है पुहुपों कि इस बगिया में मन उपवन ने स्वीकार किया रिश्ता कई सहर्ष नया मधुरिम बेला, शीत बहारें, कूजें कोकिल बागों में रजनी बीती एक वर्ष की मन करता चित्रित कर्ष नया मन में कोई रोष द्वेष हो त्यज दो किंचित पल भर में आओ कुल्हड़ वाली चाय पिये बैठे करे विमर्श नया प्लवित हो कुसुमित हो जाएं हैं बुझते रिश्ते जो जग में आगे बढ़ने खातिर उनको मिल जाये इक दर्श नया स्पर्श करें उत्तुंग शिखर _ रहे सफलता हर पल चरणों में सपने अपूर्ण गत वर्ष के जितने मिल जाये उनको अर्श नया।।