नीरज कुमार द्विवेदी – नारी/महिला – साप्ताहिक प्रतियोगिता

नारी है तो सृष्टि है,
नहीं यहाँ सब मिट्टी है

नारी है ममता का कलश
शास्वत स्नेह पूर्ण है वह,
दुनिया का आधार है नारी
बिन उसके सम्पूर्ण है क्या
वात्सल्य व निश्छल प्रेम,
वो दोनों की करती वृष्टि है
नारी है तो सृष्टि है,
नही यहाँ सब मिट्टी है

है क्षेत्र कौन सा जहाँ आज
नारी का पराक्रम नही दिखा,
रक्षा और प्रशासन में भी
गाथा उसने स्वहस्त लिखा
आध्यात्म हो या हो अंतरिक्ष
सब क्षेत्र में उसकी दृष्टि है
नारी है तो सृष्टि है
नही यहाँ सब मिट्टी है

नारी का सम्मान करो,
ये त्रिभुवन की भक्ति है
समझो न कमजोर उसे
बहुत बड़ी वो शक्ति है
आ जाता है प्रलय भी
चढ़ जाती जब भृकुटि है
नारी है तो सृष्टि है
नही यहाँ सब मिट्टी है