
जिस औरत ने देह लगा दी तेरा संसार बसाने में ,
आज क्या पाया उसने तेरे इस झूठेअफसाने में,
तिनका तिनका जोड़ नीड़ को उसने ही आकार दिया ,
और लगादी पाई पाई उसने उसे सजाने में ,
आज क्या………
चार दिवारी के खंडर को उसने ही आबाद किया,
अपने आंसु को वारा है तेरी आंखें मुस्काने में ,
आज क्या……..
आंगन की तुलसी को सीचा उसने अपने खून से, उम्र लगादी बंजर धरती पर गुलशन लहराने में ,
आज क्या…….
तेरी हर बात को उसने नसीब समझ कर माना है
हर कोशिश की उसने अपना ये रिश्ता निभाने में,
आज क्या ……….
जला कर वजूद रख दिया तूने हर इक बात पे, कसर ना छोड़ी तूने उसका अंतर्मन झुलसाने में।
आज क्या ……….
जिस औरत ने देह लगादी तेरा संसार बसाने में,
आज क्या पाया उसने तेरे इस झूठे अफसाने में।