ये दुनिया है रंग बिरंगी, सुख दुख आते जाते हैं,
हम हीं तो हैं बीज फसल के, हम हीं इसे उगाते हैं।
बाँटेंगे मुस्कान अगर खुशियाँ ही खुशियाँ पायेंगें।
जो भी देते गैरों को हम वो ही वापस पाते हैं।
ऐसे भी हैं लोग यहाँ दूजे के खातिर जीते हैं,
अपना दर्द न देखें ऐसे लोग कहाँ से आते हैं।
हैरान परेशान दिखे कोई तो इतना बतलाना,
क्यों करता है चिंता भाई रब से अपने नाते हैं।
हम जो भरते हैं आँहें तो दुनिया गीत समझती है,
क्या बतलायें उनको हम तो दर्द दिलों के गाते हैं।
मत जाओ मुस्कान पे मेरी खा जाओगे तुम धोखा,
सुख में तो हम खुश रहते हैं दुःख में भी मुस्काते हैं।
हँसते हैं जो आज किसी पे कल वो ही दुख पायेंगे,
भूल गए जो अपने कल को आज वही पछताते हैं।
मत रो गर तू आज दुखी है कल को फिर सुख पायेगा,
बाद दुखों के मौसम के ही सुख के मौसम आते हैं।
सीखो ‘राज’ हमेशा अब तुम पाठ यहाँ खुश रहने का,
लोग तो देंगे घाव तुम्हें जेबों में पत्थर लाते हैं।
– अमित राज
नालन्दा, बिहार