उमर खय्याम एक जाने माने पारसी कवि तो थे ही, साथ ही एक दार्शनिक, गणितज्ञ और ज्योतिर्विद भी थे. उनका दर्शन खाओ, पियो और मौज करो की विचारधारा पर आधारित था. आज यानी 18 मई को उमर खय्याम की 971वीं जयंती हैं. उनका जन्म 18 मई 1048 को उत्तर पूर्वी ईरान के निशाबुर (अब निशापुर) में हुआ था. खय्याम को कई गणितीय और विज्ञान की खोज के लिये भी जाना जाता है.
खय्याम की रुबाइयों के लिए मशहूर है 12वीं सदी
मशहूर कवि निदा फाजली के खय्याम पर छपे बीबीसी के एक लेख में वह उनकी रुबाइयों पर बात करते हैं. वह बताते हैं कि रुबाई की विधा को शोहरत ईरान में मिली. ईरान में 12वीं सदी, उमर खय्याम की रुबाइयों के लिए मशहूर है. खय्याम के पिता इब्राहीम ख़ेमे (तंबू) बनाने का काम करते थे और खय्याम को फारसी में ‘ख़ेमा’ के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है.
उमर ख़ैयाम की रूबाइयों की शोहरत में, अंग्रेज़ी भाषा के कवि एडवर्ड फिट्ज जेराल्ड (1809-1883) का बड़ा हाथ है. जेराल्ड ख़ुद भी अच्छे कवि थे लेकिन कविता के पाठकों में वह अपनी कविताओं से अधिक ख़ैयाम की रुबाइयों के अनुवादक के रूप में अधिक पहचाने जाते हैं. जीवन की अर्थहीनता में व्यक्तिगत अर्थ की खोज, खैयाम की रूबाइयों का केंद्रीय विषय है. इस एक विषय को अलग-अलग प्रतीकों और बिम्बों के ज़रिए उन्होंने बार-बार दोहराया है
आनंदी जीव था खय्याम- हरिवंश राय बच्चन
मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन ने खय्याम की मधुशाला अपनी किताब में खय्याम के बारे में जो खाका खींचा है, वह उनके नजरिये से एक कवि और दार्शनिक को समझने का सबसे बेहतर जरिया है. वह लिखते हैं कि पिता जी ने उमर खय्याम के बारे में केवल इतना बतलाया था कि यह फरसी का एक कवि है. इसने अपनी कविता रुबाइयों में लिखी है जैसे तुलसीदास ने चौपाइयों में. रुबाई का शाब्दिक अर्थ ही चौपाई है. पिता जी ने कितनी बारीकी से यह बात बता दी थी, अब समझ में आता है. साधारण जनता के बीच, और इसमें प्रायः ऐसे लोग अधिक हैं जिन्होंने उमर खय्याम की कविता स्वयं नहीं पढ़ी, बस यदा-कदा दूसरों से उसकी चर्चा सुनी है, या कभी उसके भावों को व्यक्त करने वाले चित्रों को उड़ती नजर से देखा है, कवि की एक और ही तसवीर घर किए हुए है.
उनके ख़याल में उमर खय्याम आनन्दी जीव है, प्याली और प्यारी का दीवाना है, मस्ती का गाना गाता है, सुखवादी है या जिसे अंग्रेज़ी में ‘हिडोनिस्ट’ या ‘एपीक्योर’ कहेंगे. इतिहासी व्यक्ति उमर खय्याम ऐसा ही था या इससे विपरीत, इस पर मुंह खोलने का मुझे हक नहीं है. फारसी की रुबाइयों में उमर खय्याम का जो व्यक्तित्व झलका है, उस पर अपनी राय देने का मैं अधिकारी नहीं हूं क्योंकि फारसी का मेरा ज्ञान बहुत कम है, लेकिन, एडवर्ड ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में अपने अंग्रेजी अनुवाद में जो खाका खींचा है उसके बारे में बिना किसी संकोच या सन्देह के मैं कह सकता हूँ कि वह किसी सुखवादी आनन्दी जीवन अथवा किसी हिडोनिस्ट या ‘एपीक्योर’ का नहीं है.