
नदिया है परिवार ,बहाव होती हैं बेटियां.
फंसी हो जीवन नैया ,पतवार होती है बेटियां.
गुरुर भले ही हों, बेटे घर के मगर,,
घर का असली उजियार होती है बेटियां.
कोई जिद न करके बंदिशों में रहती है बेटियां
तंज सहकर भी ससुराल के, मुख से कुछ न कहती है बेटियां
जीवन समर्पित करके बदले में कुछ नहीं चाहतीं
अपनी सुध भूल, औरों के लिए जीतीं है बेटियां
जब किसी बेटी पर कोई विपदा आ पडती है
गुनहगारो को छोड़ दुनिया बेटी से ही लडती है
राजनीति भी आकर के घडियाली आंसू बहाती है
हर मान सिद्ध करने, बेटी को अग्नि परीक्षा क्यूं देनी पड़ती है
सिंधु जैसी बेटी न होती तो देश को गोल्ड दिलाता कौन?
हिमा जैसी बेटी न होती राष्ट्र का परचम फैहराता कौन?
कल्पना जैसी बेटी न होती, अंतरिक्ष की राह दिखाता कौन?
बहन बेटी जैसी बेटी न होती ,भाई बाप का मान बढाता कौन?