शालिनी मिश्रा तिवारी – नारी/महिला – साप्ताहिक प्रतियोगिता

स्त्री तेरे रूप अनेक,

स्त्री तेरे नाम अनेक।

तू नारायणी,तू शतरूपा,

स्त्री तेरे काम अनेक।।

कोमल तन,भावुक मन,

प्रणयपूर्ण सारा जीवन।

क्षमाशील उर,नाजुक स्पर्श,

बने प्रेयसी हो जीवन में हर्ष।

स्त्री तेरे श्रृंगार अनेक।

स्त्री तेरे काम अनेक।।

मात पिता की तुम हो धड़कन,

भ्रातृप्रेम की तुम हो चितवन।

प्रेयस पति की तुम तड़पन,

सर्वसुख इनपर करती तुम अर्पण।

स्त्री तेरे धाम अनेक।

स्त्री तेरे काम अनेक।।

अब न स्त्री अबला है,

रोष में हो तो सबला है।

धधक उठती अंगार के जैसे,

करती द्रोह विरोध वो ऐसे।

स्त्री तेरे संग्राम अनेक।

स्त्री तेरे काम अनेक।।

मन्द बयार,शीतल सी निर्झर,

शीत छाँव देती बन तरुवर।

सरल स्नेह से भरती आंगन,

आँचल से कर देती छाजन।

स्त्री तुझे प्रणाम अनेक।

स्त्री तेरे काम अनेक।।