बलत्कृत बनाम सम्मानित

 
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बीता वर्ष जाते-जाते भारत और विश्व को दहला देने वाली घृणित यादें और गहरे घाव देकर गया है !   16 दिसम्बर को हुई घटना ने भारत के साथ-साथ समूचे विश्व को हिलाकर रख दिया और बर्बरता का नया घिनौना चेहरा सामने आया ! हालाँकि इस तरह की दुर्घटनाएं पहले भी होती रही होंगी, पर शायद विश्व के आकर्षण का केंद्र बनना इसी के भाग्य में बदा था, या जाते-जाते दुनिया और मानवता को झकझोर के रख देना उसी ‘दामिनी’ के माध्यम से होना था , जिसने भारत के पुराने सड़े-गले कानूनों में फेरबदल तक लाने की मुहिम छिड़वा दी ! कुछ हुआ , कि नहीं, वह अलग बात है !  इस घटना के गम्भीर और गहरे प्रभाव समाज के हर वर्ग, जाति और लिंग पर पड़े ! मेरी व्यक्तिगत तौर पर कई लडकियों व महिलाओं से बात हुई, जिन्होंने स्वीकार किया कि इस दुर्घटना ने उन्हें इस हद तक भयाक्रांत कर दिया था, कि अपने ही घर के अंदर एकांत में उन्हें डर लगने लगा था ! कुछ ने कहा कि अब किसी भी बस को देखते ही उनकी आँखों के आगे उस रात  का दर्दनाक दृश्य घूम जाता है, और उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं ; किसी ने कहा कि घर से निकलते समय वे कोई भी सवारी लेती हैं- ऑटोरिक्शा , टैक्सी या बस , मन में डर  अपनी गहरी पकड़ बनाये रखता है , जब तक कि वे सुरक्षित अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच जातीं ! कारण यही, कि जिस प्रकार से इस केस को मीडिया में परोसा जा रहा था, पूरा -पूरा दिन इसकी हर छोटी से छोटी खबर प्रिंट व इलेक्ट्रौनिक मीडिया के ज़रिये प्रसारित हो रही थी , उसने जनसाधारण , विशेषत: महिलाओं के दिलोदिमाग से और सारे  मुद्दे अनजाने में ही खिसका कर अपना स्थान बना लिया था ! जो संघर्ष दामिनी व उसके मित्र ने अपना जीवन बचाने के लिए किया , बार-बार सनसनीखेज रूप में पेश किया जा रहा था और बाकी  सब देश-दुनिया की खबरें थमी हुई सी प्रतीत हो रही थीं , मानो सारा विश्व सांस रोके दामिनी और उसके गुनहगारों की स्थिति पर नजर गड़ाए हो ! न सिर्फ देश भर में, बल्कि विदेशों में भी प्रदर्शन हुए, धरने हुए, और अभी भी जारी  हैं, दामिनी को न्याय दिलाने के लिए, जोकि फ़ास्ट ट्रैक कार्यवाही की घोषणा के बावजूद अभी  तक नहीं मिल पाया है ! सोने पर सुहागा यह कि इनमे से एक गुनहगार ने सरकार से उसे दण्डित करने का और दामिनी को न्याय देने का अधिकार छीनकर भारतीय  न्याय प्रणाली पर करारा  तमाचा मारा  है !
                              इसमें कोई दो राय नहीं कि दामिनी ने उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के समय बहुत कुछ सहा और संघर्ष किया ! और अपनी आखिरी सांस तक मौत से लडती रही ! लेकिन क्या कोई और लडकी या महिला उसकी जगह पर होती, तो ऐसा नहीं करती , अपनी अस्मत बचाने के लिए ??  कौन लडकी ऐसी होगी, जो मरते दम तक अपने स्त्रीत्व की रक्षा नहीं करेगी , और आत्म समर्पण कर देगी ? फिर उसे किस वीरता के लिए सम्मानित किया जा रहा  है ? वह भी मरणोपरांत ? जहाँ तक मैं समझती हूँ, सम्मान किसी भी व्यक्ति को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है ! तो क्या अमरीका यह संदेश देना चाहता है , कि जो भी लडकी या महिला बलत्कृत होने और संघर्ष करने का साहस दिखाएगी, उसे इसी प्रकार पुरस्कृत किया जायगा ? अपनी जान की रक्षा करना तो हर व्यक्ति का प्रथम अधिकार है और वही उसने भी किया  !  न तो उसने किसी  दूसरे  की जान  बचाने की कोशिश की , और न ही  जानते बूझते अपनी जान खतरे में डालकर समाज, देश या विश्व के लिए कुछ  किया , फिर सम्मान किसलिए ? यदि सम्मानित करना  ही है,  तो उस  मित्र को क्यों नहीं , जिसने दामिनी  की रक्षा  के लिए अपने प्राण खतरे में डाल दिए ? वह चाहता , तो अपने प्राणों की भीख मांगकर बच भी सकता था , या मूक असहाय दर्शक बना रह सकता था, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया ! अपनी अकेले की और उन छ : दरिंदों की वहशियाना ताक़त का अंदाज़ा हो जाने पर भी वह संघर्षरत रहा  और केवल यही नहीं , जिन दिनों यह केस पूरे उफान पर था ,उसने नैशनल चैनल  पर आकर निर्भीक और बेबाक सच कहने का साहस भी जुटाया , इसके परिणाम जानते समझते भी  ! तो उसे क्यों नहीं अमरीका ने सम्मानित करने के योग्य समझा ? वह तो जीवित भी है , और उसे सम्मानित करने से सम्पूर्ण पुरुष जाति को प्रेरणा मिलेगी , स्त्रियों की रक्षा करने की ! 
                       पर दामिनी को सम्मानित करने का निर्णय किस आधार पर लिया गया है, यह कम से कम मेरी समझ से तो बाहर है ! यदि अमरीका वास्तव में दामिनी के लिए कुछ करना चाहता था, तो उसके जीते जी उसके महंगे और जटिल उपचार को अपने देश में कराने का प्रस्ताव भी रख सकता था , जिस से शायद आज वह जीवित होती, और जीवनदान से बड़ा कोई पुरस्कार हो ही नहीं सकता !

रचना त्यागी “आभा”

कई पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर लेख, कविताएँ व कहानियां प्रकाशित
प्रकाशन-काव्य संग्रह “पहली दूब”  (2013)
‘माँ सरस्वती  रत्न सम्मान” से विभूषित (2013)