विश्वसनीयता पर ध्यान दें “अरविंद और आप” आत्मचिंतन का सही वक़्त

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आज से 2 साल पहले अरविंद केजरीवाल और अन्ना हज़ारे का नाम देश के हर व्यक्ति की ज़ुबान पर छाया हुआ था। विश्वसनीयता इतनी ज़्यादा कि  उनकी कही हर बात लोग बिना परखे ही सच मानते थे। अपनी समस्याओं और देश मे फैले भ्रष्टाचार से आजिज़ आ चुके लोग अरविंद के अंदर अपनी  समस्याओं का हल खोजने लगे थे। अन्ना तो सादगी की प्रतिमूर्ति प्रारम्भ से ही थे इसलिए व्यवस्था को करीब से समझने वाले अरविंद केजरीवाल  और उनके सहयोगी अचानक ही “लार्जर देन लाइफ” हो गए थे। उन्होने राजनैतिक दल बनाया और लोगों ने उन्हे पूरा सम्मान देते हुए दिल्ली मे 28  सीटें जितवा भी दीं । सहयोग से ही सही दिल्ली मे सरकार बनी और पूरे देश का ध्यान दिल्ली की सरकार पर केन्द्रित हो गया। और हो भी क्यों न ?  मापदंड इतने बड़े स्थापित करने के वादे थे कि इस तरह के आदर्श भारत की तस्वीर तो हम सब देखते हैं। लोकसभा चुनावों पर खुद को केन्द्रित कर  रहे अरविंद केजरीवाल ने जब दिल्ली की सत्ता छोड़ दी तब लोगों को उनसे गहरी निराशा हुई। आखिरकार, लोगों की समस्याओं का हल तो सरकार मे  रहकर ही संभव था। जनता मे निराशा घर करने लगी। उनके सपने टूटने लगे। जनता खुद को छला महसूस करने लगी। जिस जनता ने उनको सर माथे पर बैठाया था वो ही उनके सर माथे पर प्रहार करने लगी।

और फिर एक थप्पड़ प्रकरण के बाद आखिर कार क्रांतिकारी अरविंद केजरीवाल को शांति के प्रतीक बापू याद आ ही गए। कुछ समय मौन रहकर वहाँ उन्होने आत्म विश्लेषण किया। चुनाव के कुछ समय पूर्व पुण्य प्रसून के साथ भी उनका एक विडियो दिखाई दिया था जिसमे क्रांतिकारी-बेहद क्रांतिकारी शब्द की नयी व्याख्या उनके द्वारा हुई थी। देश की जनता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने की गूंज थप्पड़ की शक्ल मे सामने आई थी। जनता की अपेक्षाओं के टूटने की ये परिणीती थी।

एक बात तो साफ है कि देश की जनता को क्रान्ति एवं बदलाव तो पसंद है किन्तु क्रान्ति के नाम पर खुद को ठगा जाना उसे बर्दाश्त नहीं है। अपनी गलतियों का ठीकरा हर बार दूसरे के सिर पर फोड़कर “आप” अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते। अरविंद केजरीवाल का समर्थन एक समय हर भारत वासी ने किया था। किन्तु आज उन्हे वास्तव मे आत्म चिंतन की आवश्यकता है। अरविंद और अरविंद जैसे व्यक्तियों की देश को बेहद जरूरत है, किन्तु समय के साथ साथ अपना आत्म-विश्लेषण एवं स्व-मूल्यांकन भी अवश्यंभावी हो जाता है। उनकी विश्वसनीयता फिर से बढ़ना देश हित मे अच्छा होगा।

बदलाव एक बड़ी प्रक्रिया है। जिसमे समय लगता है। संयम की आवश्यकता होती है। अपमान करने से ज़्यादा अपमान सहने की शक्ति कारगर होती है। बड़ा खिलाड़ी वही होता है जिसको आक्रमण के साथ साथ रक्षण मे भी महारत होती है। आंदोलन के समय केजरीवाल सहवाग की तरह अच्छा आक्रमण कर रहे थे, किन्तु राजनीति की पिच पर राहुल द्रविड़ वाला रक्षण भी आवश्यक होता है। सिर्फ आरोप दर आरोप से भी तो हल नहीं निकलता। समस्या का समाधान भी आवश्यक है। गांधी दर्शन एक सौरमंडल की तरह है। जिसमे सत्य सूर्य की तरह आलोकित हैं। अहिंसा, नैतिकता, शिष्टता, आत्मबल, कर्त्तव्य, समानता आदि सूर्य रूपी सत्य के इर्द गिर्द चक्कर लगाते रहते हैं। जैसे ही सत्य का स्थान अर्ध-सत्य ले लेता है अन्य तत्व भी अपना प्रभाव खो देते हैं।

चूंकि सत्य मे कोई मिलावट संभव नहीं है इसलिए थोड़ी सी भी 19-20 होने पर सत्य का प्रभाव कम हो जाता है। शायद ऐसा ही केजरीवाल की विश्वसनीयता के साथ हुआ। जनता की अपेक्षाओं और वादों पर खरा न उतर पाने का खामियाजा उनकी विश्वसनीयता को भुगतना पड़ा। केजरीवाल को गलत में नहीं कह रहा हूँ। सिर्फ एक आत्म-चिंतन और फिर से सही मार्ग पकड़ने की उनको आवश्यकता है।

गांधी दर्शन ऐसे मे सहायक साबित होता है। गांधी दर्शन स्वयं एक शक्तिशाली अस्त्र शायद न लगे, किन्तु सापेक्षिक तौर पर अन्य विचारधाराओं पर यह सबसे कारगर शस्त्र की तरह मार करता है। शायद इसलिए ही इस महान सौम्य प्रकाष पुंज की अनुभूति अनंतकाल के लिए है। पर कभी कभी ऐसा भी लगता है कि राजघाट सिर्फ पाप धोने की जगह बन कर रह गयी है। गांधी दर्शन को स्वीकार करने के स्थान पर राजघाट पर गांधी के दर्शन का जो ढोंग होता है । वो छलावा लगता है। विश्वसनीयता की डोर पर लगी गांठ पर किसी शायर का ये शेर सटीक लगता है ।
गांठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हों या डोरी

लाख करें कोशिश खुलने मे वक़्त तो लगता है।  ,

लेखक परिचय : विधि विशेषज्ञ एवं स्तंभकार अमित त्यागी के सारगर्भित लेख विभिन्न राष्टिय पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहें हैं। आपको आई0आई0टी0, दिल्ली के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। ‘रामवृक्ष बेनीपुरी जन्मशताब्दी सम्मान’ एवं ‘प0 हरिवंशराय बच्चन सम्मान’ जैसे उच्च सम्मानो के साथ साथ आपको दर्जनों अन्य सम्मानों के द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। लेखक का 2009 में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह की अघ्यक्षता में महात्मा गॉधी द्वारा रचित पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ पर विशेष आलेख भी प्रकाशित हुआ है