वो सुबह फिर तो अायगी – अरुणा

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उम्मीद की कलम से,

संध्या के दामन पर

,सात रंगों से

सूर्योदय की बात लिखा

उसने,——-

तो

देखते ही,

सितारों की चुनरी पहने

,चाँद का टिक्का लगाये

आसमां ——

मुस्कुराते हुए झुका

धरती को चूमने

और

धीरे से बुदबुदाया

उसके कान में ——

सुनते ही

रात की रानी ने घूंघट खोला

,मंद मंद हवाओं ने,

भीनी खुशबूओं का दामन

धीरे से पकड़ा —–

और

जुगनुओं के काफले ने की स्वागत

जगमगाते  हुए

और गाने लगे —–

-कि

“वो सुबह फिर तो अायगी “——–अरुणा