( अरविंद )
आते जाते मौका पाते प्यार जताना छोड दिया
घडी घडी तेरी गलियों से आना जाना छोड दिया
मेरी हर इक बात तुम्हे तो नीम ज़हर सी लगती थी
सी कर अपने होठ सदा को बात बनाना छोड दिया
जिस रिश्ते में तेरे हिस्से आंसू ,आहें आनी थीं
उस रिश्ते को दिल पे पत्थर रखके बचानाछोड दिया
मेरी हर आवाज़ अनसुनी करके जब तू चला गया
महफिल की तो बात ही छोडो हमने ज़माना छोड दिया
कागज़ गीला हो जाता था, हर्फ फैलने लगते थे
उस खयाल को हमने अपने मन मे लाना छोड दिया
मेरे प्यार की हर कोशिश को उसकी नफरत लील गयी
रिस कर अपने नाम से हमने उसे बुलाना छोड दिया
लाख मना करने पर भी जो हरदम गाता रहता था
पता नही किसलिये आजकल उसने गाना छोड दिया
किसी मोड पर मिल जाने की बातें सब बेमानी हैं
जब से तेरे दर से लौटे ,कहीं भी जाना छोड दिया
जिनको मिलने की हसरत है, वे खुद ही चलकर आयें
यार पथिक ‘ने मगरूरों के घर पर जाना छोड दिया