एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक एकता परिचर्चा में बुद्ध धर्म अपनाने की अनिवार्यता बनी बाधक

6-08.05.15LR

(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’)  उदयपुर। 7 जून, 2015 को अखिल भारतीय संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच की डॉ. कुसुम मेघवाल जी की ओर से उदयपुर स्थित-मूल निवासी महल, टीचर्स कॉलोनी में अनेक प्रान्तों के प्रबुद्ध दलित-आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक चिंतकों और बुद्दिजीवियों को आमन्त्रित किया गया! जिसमें विभिन्न प्रदेशों से अनेक समर्पित समाज सेवी उपस्थित हुए। आमंत्रित करते समय बतलाया गया कि सभी संगठनों का ज्वाइंट फ्रंट बनाकर संविधान विरोधी और मनुवादी ताकतों को संवैधानिक तरीके से जवाब देने के बारे में परिचर्चा की जायेगी। परिचर्चा में करीब एक सौ पचास विद्वानों को आमंत्रित किया गया बताया गया, लेकिन करीब दो दर्जन ही उपस्थित हुए। जिनमें मात्र दो आदिवासी (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ और श्री देवराज मीणा) एवं दो अल्पसंख्यक उपस्थित हुए। ओबीसी का कोई भी प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। परिचर्चा के शुरू में बुद्ध वन्दना से की गयी और चर्चा हेतु प्रस्तावित मुद्दे इस प्रकार रहे :-

पहला मुद्दा-एक यूनाईटेड ताकत बनाने हेतु पचास संगठनों का एकीकरण करना, जिससे राष्ट्रपति से बात करने हेतु राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल बनाया जा सके : जबकि वास्तव में डॉ. कुसुम मेघवाल जी के नेतृत्व में संचालित ‘अखिल भारतीय संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच’ के बैनर के नीचे सभी संगठनों को एकीद्भत करना परिचर्चा का वास्तविक मकसद सामने आया। जिसके लिए दिल्ली से राष्ट्रीय संगठन के रूप में रजिस्टर्ड हक रक्षक दल सामाजिक संगठन की ओर सहयोग करने पर सशर्त सहमति का प्रस्ताव रखा गया। जिसके तहत परिचर्चा कार्यक्रमों में बुद्ध वन्दना की अनिवार्यता को समाप्त की जाए। इस पर उपस्थित अधिकतर बुद्धिष्ठ बन चुके अजा के बन्धुओं की ओर से प्रतिवाद करते हुए तर्क पेश किया गया कि जो भी लोग बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी को दिल से मानते हैं, उनको बुद्ध धर्म को मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

काफी चर्चा के बाद भी हिन्दू धर्म में जातिगत विभेद, छुआछूत और अमानवीय व्यवस्थाओं से मुक्ति के लिए संघर्ष में सहयोग देने की बात पर आपसी सहमत होने के बावजूद भी हर एक मीटिंग के प्रारम्भ में बुद्ध वन्दना किये जाने और सभी एससी, एसटी, ओबीसी और मायनोरिटी द्वारा बुद्ध धर्म को अपनाने के प्रस्ताव का हमारी और से यह कहकर समर्थन नहीं किया गया क्योंकि-

सर्व प्रथम तो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान धार्मिक आजादी और आस्था एवं अंत:करण की आजादी का मूल अधिकार प्रदान करता है!

दूसरे आदिवासी हिन्दू धर्म से शासित नहीं होते हैं।

ऐसे में संविधान संरक्षण की बात करते हुए बुद्ध धर्म को सभी पर जबरन थोपने वाली बात हमारे एससी, एसटी, ओबीसी और मायनोरिटी के संयुक्त संघर्ष को प्रारम्भ में ही कमजोर कर सकती है!

पटना, बिहार से मीटिंग में शामिल होने वाली मैडम माला दास ने संविधान और हिन्दू ला की व्याख्या करते हुए हमारी बात का सैद्धांतिक तौर पर समर्थन किया! इसी के साथ इंदौर मध्य प्रदेश से पधारी 76 वर्षीत शिक्षाविद मैडम रमा पांचाल ने भी हमारी बात का समर्थन किया! लेकिन अ. भा. संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच की ओर से बुद्ध को यह कहकर सभी को अपनाने का जोर/तर्क दिया गया कि बाबा साहेब ने बुध्द धर्म को अपनाया था, तो उनका निर्णय गलत कैसे हो सकता, जबकि हमारा कहना था कि संविधान में धर्म निरपेक्षता का मूल अधिकार समाविष्ट करने वाले भी तो बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेड़कर ही थे! अत: धर्म को व्यक्ति का व्यक्तिगत विषय माना जाना चाहिए, जिसका बोंली सवाई माधोपुर से पधारे सेवानिवृत तहसीलदार एवं सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इण्डिया के जनाब जफर अहमद अमीन जी ने भी जमकर समर्थन किया!

सभा में दो मुस्लिम और दो आदिवासी चिंतकों के अलावा सभी दलित चिंतकों के शामिल होने से यह बात साफ तौर पर सामने आती है कि संविधान और आरक्षण के साथ हो रही छेड़छाड़ के प्रति अल्पसंख्यक, ओबीसी और आदिवासी या तो संजीदा नहीं हैं या इस बारे में जागरूक नहीं या फिर इन वर्गों के मध्य ऐसे विवादित मुद्दे हैं, जिनकी वजह से इनका मंच पर आकर संयुक्त आवाज उठाना पूर्णत: संभव नहीं हो पा रहा है! जबकि आजादी के बाद से दलित वर्ग के लोग लगातार मनुवादियों के शोषण और अन्याय का प्रतिकार करने के लिए तन, मन और धन से प्रयास करते रहे हैं! ऐसे में ये हालात चिंताजनक हैं! दलित वर्ग की ओर से आरक्षण की लड़ाई में सभी को एकजुट करने की कोशिश तो लगातार की जाती रही हैं, लेकिन लगभग सभी दलित संगठनों की ओर से बुद्ध धर्म को अनिवार्य बनाना, धार्मिक आस्थाओं के विपरीत होने कारण आरक्षित एवं अल्पसंख्यक वर्गों की एकता में बाधक होता हुआ प्रतीत होता है! यही वजह है कि अजा का छोटा सा तबका ही बुद्धिष्ठ बन सका है।

जमीनी सच्चाई भी दलित आंदोलन के बुद्धमय होने की पुष्टि नहीं करती है, क्योंकि लगभग सभी दलित बस्तियों में घरों के आगे नींबू-मिर्ची टंगे मिलेंगे और घरों के प्रवेश द्वार पर गणेश की मूर्ति स्थापित होती हैं! घरों के अंदर दुर्गा, विष्णु सहित सभी हिन्दू देवी देवताओं के चित्र/मूर्ति पूजास्थल पर स्थापित हैं! ऐसे में मनुवाद के बजाय सम्पूर्ण रूप से हिन्दू धर्म को त्यागकर बुद्ध धर्म को अपनाने की बाध्यकर अनिवार्यता एससी, एसटी, ओबीसी और माइनोरिटी को एक मंच पर आने में सर्वाधिक बाधक हो रही है!

दूसरा-मिड डे मील, मनरेगा, मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा के मूल अधिकार आदि संविधान विरोधी योजनाओं की समाप्ति हेतु काम करना : इस प्रस्ताव के पक्ष में हक रक्षक दल की ओर से सहमति नहीं दी गयी। क्योंकि मेहनतकश आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक और अनेक दलित परिवार भी मनरेगा के कारण ही अपना गुजर बशर कर पा रहे हैं। मिड डे मील और मुफ्त-अनिवार्य शिक्षा की बदौलत ही देश के अति पिछड़े-आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आदिवासियों और पिछड़ों में शिक्षा का प्रसार प्रारम्भ हुआ है।

उपरोक्त मतभेदों के होते हुुए हक रक्षक दल सामाजिक संगठन की ओर से मिड डे मील बन्द किये जाने, मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा के मूल अधिकार और मनरेगा को समाप्त किये जाने और बुद्ध धर्म को सभी एससी, एसटी, ओबीसी और मायनोरिटी के द्वारा मानने और बुद्ध धर्म को राष्ट्रीय धर्म की भॉंति अपनाने की बातों का समर्थन नहीं किया गया! यद्यपि सभी संवैधानिक मुद्दों और आरक्षण की लड़ाई में हमारी ओर से पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाया गया!

परिचर्चाओं के दौरान सबसे दु:खद पहलु यह भी देखने को मिलता है कि सम्भवत: आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों की ओर से ऐसे चिंतन शिविरों में भाग नहीं लिए जाने के कारण या चिंतन शिविरों में दलितों की बहुतायत उपस्थिति के कारण आदिवासी तथा ओबीसी समस्याओं पर विचार ही नहीं किया जाता है! न नक्सलवाद पर चिंता, न चर्चा? न ही आदिवासियों तथा ओबीसी की कमजोर जातियों का सामाजिक पिछड़ापन और तिरस्कार दलितों के बीच में चिंता का संवेदनशील विषय बन पाया है!

तीसरा-मूल निवासी एकता पर चर्चा : एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनोरिटी को मूल नीवासी कहकर इनकी एकता पर चर्चा के शुरू में ही इस विषय में हक रक्षक दल की ओर से कहा गया कि मूल निवासी शब्द को एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनोरिटी का संयुक्त पर्यायवाची कैसे माना जा सकता है, जबकि शक, हूण, कुशाण आदि विदेशी नस्लों के लोग ओबीसी में बहुतायत में शामिल हैं और मुसलमानों में विदेशी मुगलों के वंशज भी शामिल हैं। ऐसे में यदि इन सबको भारत का मूल निवासी माना लिया गया तो फिर आर्य तो इन सब से पहले भारत में आये थे, उनको मूल निवासी की परिभाषा से कैसे बाहर माना/किया जाएगा?

अत: हक रक्षक दल की ओर से सुझाव दिया गया कि इस देश के दस फीसदी आर्यों के शोषण और मनमानी से इस देश की सभी जाति, नस्ल और वर्ग परेशान हैं तो हम एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनोरिटी को मूल निवासी मानने के बजाय अधिक सार्थक शब्द ‘अनार्य’ कहकर क्यों ना संबोधित करें? जिसमें किसी प्रकार के विवाद की कोई गुंजाईश ही नहीं है। हक रक्षक दल की ओर से बताया गया कि हक रक्षक दल ‘‘अनार्यों के हक की आवाज’’ बनकर राष्ट्रीय वैचारिक मुहिम शुरू कर चुका है, जिसमें सभी को सहयोग करना चाहिए। इस बात का अधिसंख्य लोगों ने समर्थन किया। विशेषकर मैडम रमा पंचाल ने खुलकर कहा कि मूल निवासी अनुचित संबोधन है, हमें अनार्य, असुर और राक्षस शब्दों का उपयोग करना होगा। मैडम माला दास और जनाब जफर अहमद जी ने भी इसका समर्थन किया। इसके उपरान्त भी अधिसंख्य उपस्थित दलित चिंतकों को मूल निवासी शब्द का मोह ही अधिक पसंद आया।

चौथा-न्यायिक मनमानी : हक रक्षक दल की और से देश की न्यायपालिका द्वारा संविधान की मनमानी व्याख्या के जरिये आरक्षण को कमजोर किये जाने से सम्बन्धित बालाजी, इंदिरा शाहनी, माधुरी पाटिल आदि प्रकरणों पर प्रकाश डाला गया। जिस पर सभी ने गहरी चिंता व्यक्त की। हक रक्षक दल की ओर से इस बात पर नाराजगी व्यक्त की गयी कि एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनोरिटी की समस्याओं के निराकरण और एकता की बातें तो खूब की जाती हैं, लेकिन चर्चा के एजेंडा में मुसलमानों और आदिवासियों के साथ तिरस्कार, मीणा-मीना विवाद जैसे संवेदनशील विषय और ओबीसी को संवैधानिक आरक्षण प्रदान करके, उनको पदोन्नति एवं विधायिका में आरक्षण प्रदान करना परिचर्चा में शामिल क्यों नहीं हैं? जिसका आयोजकों की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।

पांचवां-समाचार-पत्र का प्रकाशन : एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनोरिटी के मुद्दों को प्राथमिकता से उठाने के लिए एक समाचार-पत्र के प्रकाशन का प्रस्ताव भी विचारार्थ रखा गया था, लेकिन इसकी भी वास्तविकता यही सामने आयी कि मैडम डॉ. कुसुम मेघवाल जी का एक समाचार-पत्र जो आर्थिक कारणों से लम्बे समय से बंद है, उसे ही फिर से प्रारम्भ करने पर परिचर्चा की गयी। जिस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।

उपरोक्त के अलावा निम्न विषय भी चर्चा हेतु पेश किये गए :-

-केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा संविधान विरोधी योजनाएं बनाकर लागू करने का विरोध किया जाए।

-कांग्रेस, भाजपा और आरएसएस द्वार बाबा साहेब की मूल विचारधारा को हवा में उड़ाकर, बाबा साहेब को हिंदूवादी के रूप में पेश किया जाकर बाबा साहेब पर कैंजा किया जाने का एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनोरिटी द्वारा विरोध किया जाए।

-राष्ट्रपति से समय लेकर आमने-सामने बैठकर चर्चा करना और उनको बताना कि वे संविधान की शपथ लेकर भी संविधान की रक्षा नहीं करते, बल्कि खुद भी गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने जैसे ऊलजुलूल बयान देने से क्यों नहीं डरते, जबकि संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी राष्ट्रपति की होती है।

-केंद्र सरकार को संघ प्रमुख मोहन भागवत चला रहे हैं। गृह मंत्री भागवत से राय मशविरा करके काम करते हैं, जो गलत है।

-प्रधानमंत्री को इस बात के लिए विवश करना कि वह संविधान की उद्देशिका के अनुसार समतावादी भारत की स्थापना के लिए सरकार को संचालित करने का प्रयास करें।

-हिंदूवादी ताकतों द्वारा घर वापसी कार्यक्रम और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की संविधान विरोधी योजना को रोकने के प्रयास।

-दलितों के साथ जारी-छुआछूत, उत्पीड़न और अत्याचारों को रोकने के लिए खाप और जातीय पंचायतों की दादागिरी समाप्त करना। सरकार को इस बात के लिए राजी करना कि सरकार की ओर से अंतरजातीय भोज आयोजन करना। जिनमें छोटी जातियों की ओर से भोजन बनवाना। जिनमें सवर्ण जातियों के शामिल नहीं होने पर उनको दंडित किया जाना।

-संवैधानिक आरक्षण को बैक लॉग सहित पूर्ण करवाना।

-आरक्षित क्षेत्रों से चुने जन प्रतिनिधियों को रास्ते पर लाने के जरूरी उपाय करना। उनके खिलाफ निन्दा प्रस्ताव लाना आदि।

-डांगावास प्रकरण पर चर्चा।

उक्त विषयों पर भी चर्चा की गयी और सभी असंवैधानिक मामलों को राष्ट्रपति के समक्ष उठाने हेतु अग्रिम मंजूरी लेकर समय लिए जाने, जंतर मन्त्र पर एक दिन का सांकेतिक धरना आयोजित करने का निर्णय लिया गया। यद्यपि इसकी अंतिम कार्ययोजना पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।

मनुवादी ताकतों द्वारा देश के संविधान को धता बताकर लिए जा रहे मनमाने निर्णयों को रोकने पर चर्चा की गयी। जिससे देशभर के वंचित तबकों के संवैधानिक हकों को संरक्षित किया जा सके।

अत: इन हालातों में देश के समस्त अनार्यों (एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों) को एकजुट होकर आवाज उठानी होगी! जिसके लिए हक रक्षक दल सामाजिक संगठन की ओर से किसी भी संयुक्त मुहिम को पुरजोर समर्थन व्यक्त किया गया! यद्यपि मिड-डे मील एवं मनरेगा को बन्द किये जाने और मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के मूल अधिकार को समाप्त किये जाने की मांग को उचित नहीं मानते हुए हक रक्षक दल की ओर से समर्थन नहीं दिया गया!-08.06.2015