दहेज उत्पीड़न और दाम्पत्य विवाद, समाधान क्या?

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(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’) जब हम बीमार होते हैं तो किसी नीम हकीम के बजाय अच्छे डॉक्टर के पास जाते हैं! गम्भीर बीमारी होने पर विषय विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाते हैं। जैसे हड्डी टूटने पर ओर्थोपेडिक सर्जन के पास। मनोरोग होने पर मनोचिकित्सक के पास। लेकिन कितने दुःख और आश्चर्य की बात है कि परिवार या दाम्पत्य के बिखराव या टूटन आने पर हम उन लोगों के पास सलाह या न्याय के लिए जाते हैं, जिनके पास परिवारों को जोड़ने का नहीं, बल्कि तोड़ने का अनुभव होता है! जिनको पारिवारिक विषयों के सकारात्मक समाधान का कोई ज्ञान नहीं होता!

एक लड़की के साथ ससुराल में अन्याय होने पर अकसर वह अपने परिवार और रिश्तेदारों से सलाह करती है, जिनमें से अधिकाँश जो पुरातनपंथी होते हैं, वे किसी भी कीमत पर ससुरालियों के जुल्म और ताने सहते हुए भी रिश्ते को निभाने की लड़की को सलाह देते हैं! जबकि खुद आधुनिक समझने वाले कुछ लोग दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करवाने की सलाह देते हैं, बेशक दहेज उत्पीड़न हुआ हो या नहीं।

अनेकों देशों में किये गए शोध और अध्ययनों से बार-बार ज्ञात और प्रमाणित हुआ है कि पति-पत्नी के मध्य के विवादों के मूल में दहेज उत्पीड़न बहुत ही कम कारण होता अर्थात 2 से 5 फीसदी मामलों में ही दहेज उत्पीड़न असली कारण होता है! बल्कि विवाद के मौलिक कारण निम्न बताये गए हैं-
1. पति-पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा विवाहपूर्व के प्रेम या यौन सम्बंधों का विवाह के बाद भी जारी रखना!
2. पति-पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा विवाह के बाद भी अन्य किसी से प्रेम या यौन सम्बन्ध बनाना!
3. पति-पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा एक दूसरे की यौन सन्तुष्टि का ख्याल नहीं रखना!
4. पति-पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा एक दूसरे के स्वाभिमान को चोट पहुंचाना!
5. पति-पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा एक-दूसरे के माता-पिता या परिवार के लोगों के बारे में अपमानजनक टीका-टिप्पणी करना!
6. पति-पत्नी दोनों में से किसी के भी द्वारा एक-दूसरे की भावनाओं और समस्याओं को जानने के लिए पर्याप्य समय नहीं निकालना!
7. पतियों या ससुरालियों द्वारा अपनी पत्नियों या बहुओं को अपनी और परिवार की गुलाम समझकर उनसे नौकरों की भाँति काम करवाना!
8. पतियों द्वारा अपनी पत्नी का अपने परिवार, रिश्तेदारों और पड़ौसियों के मध्य अपमान और तिरस्कार करते रहना!
9. पति-पत्नी दोनों में से किसी के निजी मामलों में किसी तीसरे व्यक्ति का अनाधिकार हस्तक्षेप!
10. औरतों का परिवार के प्रति संकुचित दृष्टिकोण, जिसके चलते पति के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों और रिश्तेदारों की अनदेखी!
11. पतियों द्वारा औरतों की निजी जरूरतों, रुचियों आदि की अनदेखी करना या उनको पूर्ण नहीं करना!
इत्यादि!

मेरा सवाल यह है कि जब उपरोक्त में से कोई एक या एकाधिक समस्याएं किसी दम्पत्ति के बीच पनपती हैं, तो हमारे समाज की जो हालात या जो स्तर है, उसमें क्या वे ईमानदारी से अपनी समस्या किसी को भी सहजता से बता सकने में समर्थ और सक्षम हो पाते हैं?

90 फीसदी मामलों में किसी को असली समस्या को बताया ही नहीं जाता। चाहकर भी नहीं बता पाते! इन हालातों में परिवार, रिश्तेदार और पंच-पटेलों के हस्तक्षेप से हालात और बिगड़ जाते हैं, क्योंकि न तो उनको समस्या की वास्तविकता का पता चल पाता है और न हीं वे समाधान तलाशने में सक्षम होते हैं!

बल्कि सच तो ये है कि पति और पत्नी के मध्य का विवाद जैसे ही बाहरी लोगों के बीच जाता है। विशेषकर जब लड़की अपने परिवार या रिश्तेदारों को समस्या के बारे में बतलाती है तो मामला उलझ कर जटिल हो जाता है! उसके ससुरालियों को लगता है, जैसे उनकी करतूतों को उजागर करके उनकी बहू ने उनका बहुत बड़ा अपमान किया है! फिर विवाद दो परिवारों के बीच मूंछों का सवाल बन जाता है! अर्थात मामला पुरुषों के अहंकार से जुड़ जाता है! आपसे वाकयुद्ध शुरू हो जाता है। एक-दूसरे को देख लेने की धमकियां दी जाने लगती हैं! असल समस्या न जाने कहाँ रह जाती है और अहंकार सामने आ जाता है!

इन हालातों में वधु पक्ष द्वारा मामला दहेज उत्पीड़न का बनाकर पुलिस थाणे में पेश कर दिया जाता है! जहां पर प्रोफेशनल वकील की सलाह पर रिपोर्ट लिखवाई जाती है और लड़की से बिना पूछे पति के परिवार के समस्त लोगों और रिश्तेदारों को दहेज उत्पीड़न में फंसा दिया जाता है! लड़की बिना कुछ जाने, समझे और बिना पढ़े कागजों पर दस्तखत करने और अपने परिवार के पुरुषों की हाँ में हाँ मिलाने को मजबूर हो जाती है!

पुलिस ससुराल के सभी लोगों को गिरफ्तार करने का भय दिखाकर जमकर माल कमाती और ज्यादातर मामलों में रिपोर्ट में लिखे अधिकतर आरोपियोंको गिरफ्तार भी करती है! हो गया परिवार के लोगों और कानून का समाधान!

इन हालातों में ससुराल के दरवाजे तो हमेशा को बन्द हो ही जाते हैं! अब शुरू होता है एक लड़की का अपने पीहर में उत्पीड़न! उसकी भाभियाँ और भाई भी उस लड़की को बोझ समझने लगते हैं। उसे अपने ही घर में नौकरों की तरह से जीवन काटना पड़ता हैं। हंसी-खुशी तो उसके जीवन से काफ़ूर ही हो जाती हैं!

यदि गहराई से देखें यो मूल समस्या हमारे देश के सामाजिक ढाँचे में है! हमारे यहां पर दो पहिया की मोपेड चलाने के लिए तो लाईसेन्स की जरूरत होती है, लेकिन दाम्पत्य जीवन जैसे अतीव महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर हम किसी विशेषज्ञ के परामर्श करने की जरूरत तक नहीं समझते। यही समस्या की असली जड़ है!

पहले तो अधिकतर औरतें अशिक्षित हुआ करती थी। पुरुषों द्वारा औरतों को पैर की जूती समझा जाता था। ऐसे में औरतें पति और ससुराल के अत्याचारों को अपनी नीयति मानकर सह लेती थी, लेकिन अब जब हमने बेटियों को तो शिक्षित कर दिया, लेकिन बेटे अभी भी अपने पिताओं और दादाओं की ही तरह से तानाशाह पति बनकर अपनी पत्नी पर हुकम चलाने की मानसिकता से मुक्त नहीं हुए हैं! सास चाहती हैं कि उन पर जिस तरह उनकी सास ने हुकुम चलाया, वे भी अपनी बहू पर वही तरीके अपनाये, जो अब असम्भव है।

ऐसे में परिवार में विस्फोट तो होंगे ही! इनको कोई नहीं रोक सकता! बड़ी बेदर्दी से हर दिन, दिल और परिवार टूट रहे हैं! दहेज के केस लगातार बढ़ रहे हैं! एक दूसरे के चरित्र पर कीचड़ उछाला जा रहा है! पीढ़ियों की पारिवारिक निष्ठा और सम्मान चौराहे पर तहस-नहस हो रहे हौं! जेल जाने वाले वरपक्ष के परिवार आहत और अपमानित होकर आत्महत्या तक कर रहे हैं! दहेज उत्पीड़न के कारण बेमौत मरने वाली औरतों से कई गुनी संख्या उन लोगों की है, जो झूठे दहेज उत्पीड़न मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार और पुलिस उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर लेते हैं!

दूसरी ओर पीहर में रहकर जीवन जीने को विवश औरतें प्रतिपल घुटन, अपमान, तिरस्कार और अभावमय जीवन जीने को विवश होकर हिस्टीरिया जैसे मानसिक रोग से पीड़ित हो जाती हैं और उनमें से अनेक आत्महत्या तक कर लेती हैं! बहुत कम दूसरे जीवन साथी के बारे में सोच कर निर्णय ले पाती हैं! जिनके साथ बच्चे हों उनकी हालत तो सांप छछून्दर की जैसी हो जाती है। सर्वाधिक तकलीफ बच्चों वाली औरतों को ही झेलनी पड़ती हैं, क्योंकि बच्चों के निष्ठुर पिता अपने बच्चों को छोड़कर सधिकतर मामलों में दुसरी पत्नी ले आते हैं!

अंतिम निष्कर्ष: वास्तव में ऐसे मामलों में जहां पति-पत्नी के बीच विवाद पनपते ही किसी प्रोफेसशनल फैमली काउन्सलर (दाम्पत्य विवाद परामर्शदाता) की सलाह ली जानी चाहिए! क्योंकि ऐसे परामर्शदाता मानव मनोविज्ञान, मानव व्यवहारशास्त्र, यौनविज्ञान विषयों के विशेषज्ञ तो होते ही हैं, साथ ही साथ वे दाम्पत्य विवादों के व्यावहारिक समाधानों में निपुण भी होते हैं! जिनके परामर्श से 60-70 फीसदी मामलों में विवादों के सकारात्मक समाधान मिलते हैं! या सहमति से विवाह विच्छेद के रास्ते निकलते हैं। जिससे दो जीवन और दो परिवार बर्बाद नहीं होने से बच जाते हैं और औरतों को समय रहते न्याय और सम्मान मिल जाता है!

यद्यपि भारत में इन विशेषज्ञों की संख्या बहुत कम हैं! जो कुछ हैं, वे भी मेट्रो सिटीज में ही हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं! आम तौर पर इनकी फीस भी हजारों-लाखों में होती है! लेकिन यह फीस मेरी राय में बहुत कम है! जबकि यूरिपीय देशों में इन विशेषज्ञों की पर्याप्त उपलब्धता है! वास्तव में तो हर पति और पत्नी को जीवन में इनके परामर्श की अनेक बार जरूरत होती है। क्योंकि अधिकतर जो पति-पत्नी हमें लोगों के सामने मुस्कराते नजर आते हैं, उनमें से भी 70 फीसदी से अधिक दुखी, परेशान, विवश और उत्पीड़ित होते हैं, लेकिन रिश्ते को जोड़े रखना उनकी पारिवारिक और सामाजिक मजबूरी है! जिसे यों समझा जा सकता है, बेशक उनका कानूनी तलाक नहीं हुआ होता है, लेकिन उनका जीवन तलाक लिए हुए दम्पत्तियों से भी अधिक कष्टप्रद होता है!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, 13.06.2015

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लेखक :
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन,
नेशनल चेयर मैन-जर्नलिस्ट, मीडिया एण्ड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन और राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS)
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