
मैं जा रही हु सबको छोड़कर ,सबकी आँखों में आंसू भिगोकर ,
नहीं पता था ऐसा वक्त आएगा ,इन दरिंदों के हत्थे चढ़ जाउंगी,
कह देना माँ से ,मत बहाएं आंसू ,
तेरी दामिनी जिन्दा है ,इस धरती पर नहीं तो ,आसमान पर परिंदा है,
माफ़ करना पापा,मैं छौड़ चली इस दुनिया को ,
जब कन्यादान का वक़्त आया,
मत रोना भाई ,तेरी ही बहना हु,
अपनी कलाई पर जरुर बांधना धागा,
हर माँ-बाप की इच्छा होती है कन्यादान ,
पर मैं न कर सकी आपका पूरा अरमान,
मैं जीना चाहती थी ,मेरी यही थी ख्हवाहिश पर ,
न दिया किस्मत ने साथ,
बस चली इस दुनिया से ,दरिंदों ने किया बुरा हाल ,
उन्हें सजा दिलवाने के पूरा है अधिकार ,
न हो किसी और बेटी का मुझ जैसा हाल,
नहीं सह पायेगी इन दरिंदों का अत्याचार ,
मेरे अंतिम इच्छा पूरा करना है आपका अधिकार ,
दिलाना इन दरिंदों को कड़ी सजा अपनी इच्छानुसार ।
(गीता गाबा )