*सुख*
सुख की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है
दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाऊँ, तब लगता सच्चा सुख यही है
सुख की खोज में मानव दिन
रात भटकता रहता है
सुख पाने की लालसा होती, दुख से वह डरता है
तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ ओर, तुलसी दास जी ने लिखा
मीठी वाणी से प्रेम बढ़े, ऐसा हमने भी है सीखा
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं
कह गए तुलसी दास
स्वतंत्र जीवन जीओ,
स्वयं पर करो विश्वास
सुख तो है एक मृगतृष्णा,
उसके पीछे सब भाग रहें
बड़े सुख की खातिर छोटे सुख को त्याग रहें
कहते हैं पैसा सब सुख देता है
पर मैंने पैसे वालों को भी रोते देखा है
बुजुर्गों की सेवा करने से होता सुख का एहसास
धोखा कभी किसी को न देना,
मत तोड़ना किसी की आस
किसी के दुख में काम आओ
औरों की खुशियों में खुशी मनाओ
दुख में हौसला मत छोड़ो, पत्थर काट राह बनाओ
कहते हैं पहला सुख निरोगी काया
जिसने योग किया वही पाया
सुख दुःख मन की स्थिति है,
दुख को न हावी होने दो खुद पर,
लक्ष्य चाहे दूर दिखे, चलते जाओ सत्य के पथ पर
सकारात्मक सोंच रखो, मत समझो खुद को मजबूर
दुख कोसों दूर रहेंगे, सुख पाओगे तुम भरपूर
डॉ० उषा पाण्डेय ‘शुभांगी’
स्वरचित
वेस्ट बंगाल