“उम्र-की,
उतरती-ढलानों-पर,
जिंदगी,
लुढ़कती-सी क्यूँ है?
हर-मुसाफ़िर,
मुफ़लिसी-का-शिकार,
मौत,
पेशतर क्यूँ है?
है, शिकस्त,
खा-चुकी-रफ़्तार,
ये दौड़,
खुदगर्ज क्यूँ है?
जब, छूटा-
मोह-माया, घर-बार,
तू-तलाशता,
आसमां-में, जन्नत क्यूँ है?”____
_दुर्गेश वर्मा