प्रा.गायकवाड विलास लातूर महाराष्ट्र
*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**विषय: आंधी-तूफान*
**चाहे कितनी भी*- – –
**** ****** ***
(छंदमुक्त काव्य रचना)
चाहे कितनी भी आंधियां उठें जीवन में,
हारना नहीं तुम अपनी जिंदगी के राहों पर।
आंधियां तुफानों से ही भरी है जिंदगी हमारी,
मगर परबत कहां उस आंधियां तुफानों से हिलते है।
उसी परबतों जैसा रखकर हौसला जीवन में,
अपनी मंजिल की ओर ही तुम्हें बढ़ते रहना है।
हारकर जो रुक जाते है अपने पथ पर यहां,
वही लोग यहां पर घुट घुटकर अपनी जिंदगी जीतें है।
ये जिंदगी नहीं है हमारी आंधियां तुफानों जैसी,
आंधियां तुफान तो यहां पलभर में ही खत्म ही खत्म हो जाते है।
मगर ये जिंदगी का सफ़र युंही खत्म नहीं होता यहां पर,
इसीलिए हमें यहां हर हाल में सभी मुश्किलों को हराकर जीतना है।
ज़लज़ला आएं या आएं वो कभी आंधी-तूफान,
लेकिन वही आंधियां तुफान यहां सबका नामोनिशान कहां मिटा सकते है।
ऐसे ही सुख दुखों के पलों से भरी है ये जिंदगी हमारी,
इसीलिए हंसते-हंसते ही हमें यहां अपनी तकदीर को बदलना है।
एक जैसा ही नहीं होता कभी वक्त यहां पर,
कुदरत में भी कभी धूप और कभी वो ठंडी छांव है।
सफलताएं कभी युंही नहीं मिलती जीवन के राहों पर,
आंधी-तूफानों के बिना यहां संसार में कौन-सी राह है।
उठेगी आंधियां छोड़ जायेगी वो वजूद अपना,
फिर भी वो आंधियां तुफान कहां मिटायेंगे यहां बाजीगरों का सपना।
वहां मुसीबतें भी हारकर टूट जायेगी जीवन में,
ऐसे जांबाज बाजीगरों को कौन यहां पर मिटा सकता है।
चाहे कितनी भी आंधियां उठें जीवन में,
हारना नहीं तुम अपनी जिंदगी के राहों पर।
आंधियां तुफानों से ही भरी है ये जिंदगी हमारी,
मगर परबत कहां उस आंधियां तुफानों से हिलते है।
प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.