सुरेश ने घड़ी के आठ बजते ही अपने दोस्त से विदा ले ली । गाड़ी के मेन रोड पर आते ही वो सोचने लगा कि इतनी उम्र हो गई कुल मिला के उसकी ग्रहस्थी बहुत संतोष जनक ही रही । शिक्षित सुंदर पत्नी और दो होनहार बच्चे । जब से उनके बच्चे आगे की पढ़ाई के लिए बेंगलोर हॉस्टल गए हैं उनकी पत्नी शाम होते ही अधीर हो जाती है । यूं तो उसकी पत्नी सुशीला से उन्हें कोई शिकायत नहीं हुई पर एक बात उसे बहुत अखरती है, वो है उनका हर वक्त नसीहते देते रहना । बच्चे भी यही समझते थे कि माँ अपने आगे सभी को छोटा ही समझती हैं । सुरेश ने जैसे ही गाड़ी की स्पीड बढ़ाई ऐसा लगा पास बैठी सुशीला ने कहा हो –“ 60 से ऊपर नहीं सुरेश ,गाड़ी कंट्रोल में रहे उतनी ही स्पीड रखना चाहिए ।” और उसने स्पीड कम कर ली। सर्दियों की शुरुआत है तो अंधेरा घिर आया था जाना पहचाना रास्ता होने के नाते जानता था कि इस सड़क पर कम आवाजाही रहती है । अचानक उसे लगा सड़क के किनारे कोई महिला दो छोटे बच्चों के साथ खड़ी लिफ्ट मांग रही है । सोचा न जाने किस मुसीबत में हो ,थोड़ा झिझकते हुये उसने गाड़ी को ब्रेक लगा दी । लगभग भागते हुये वो आई और आते ही बोली –“सर मुसीबत में हूँ आगे बसस्टॉप तक लिफ्ट दे दें ।” अभी वो कुछ पूछता वो तपाक से बोली –“बच्चे खड़े खड़े थक गए हैं दरवाजा तो खोलिए ।” कार खुलते ही बच्चों ने पीछे और आगे उस स्त्री ने कब्जा कर लिया । औरत 35-40 की सुंदर कदकाठी की दिखती थी और बच्चों की उम्र भी 7 से 9 के बीच लग रही थी ।
सुरेश ने कार बढ़ा दी और स्टीरियो चला दिया । सुरेश ने औपचारिकता वश पूछ लिया –“ मैडम आपको कहाँ जाना है ।”उसने देखा औरत हँसते हुए उसपर झुकते हुए बोली –“ यार जहां तुम चाहो ।”
सुरेश चौक पड़ा । अब वो उससे बाकायदा छेड़छाड़ कर रही थी ।सुरेश ने ताउम्र एक नेक और वफादार पति की भूमिका निभाई है ये अनापेक्षित स्थिति से वो घबरा सा गया । पत्नी सुशीला ने अनेकों बार समझाया था कि रास्ते में किसी अजनबी को लिफ्ट मत देना खासकर जवान लड़कियों को । आए दिन लूटपाट और अपहरण की वारदात होती रहती हैं । सुरेश ने हिम्मत दिखाते हुये कहा –“ देखिये मैं शरीफ आदमी हूँ ।” “शरीफ नहीं हो मैंने कब कहा, रास्ते में होटल है वही रुकते हैं और बच्चे साथ है तो कोई शक भी नहीं करेगा । फिक्र मत कर ज्यादा पैसे नहीं लूँगी ,”औरत ने बेशर्मी से जवाब दिया ।
सुरेश का पाँव ब्रेक पर ज़ोर से पड़ा हकलाते स्वर में कहा –“ उतर जाइए प्लीज़ ।” बदले में वो तेवर दिखाते हुई बोली – “ अभी शोर मचा दूँगी तो क्या हाल होगा जानता है न ,यदि कम रोकड़ा है तो जो करना है यही कर ले 500 लगेंगे ।”
‘बच्चों के सामने ऐसा कहते शर्म नहीं आती तुझे , नहीं है मेरे पास पैसा और कुछ करने की इच्छा भी नहीं है बहन, मुझे बख्श दे ।” औरत के स्वर में तल्खी भर गई –“ धंधा है सर जो कर रही हूँ इनके लिए और आगे इन्हे भी यही करना है टाइम और दिमाग खोटी मत कर ।सुरेश ने पेंट से पर्स निकालते और कहा – “ उतरो बच्चे लेकर और ये 500 पकड़ो मुझे घर पहुँचना है जल्दी ।” जैसे जैसे घर नजदीक आ रहा था सुरेश सोच रहा था आज तो जान बची लाखों पाये नहीं बल्कि इज्जत बची लाखों पाये वाली बात हो गई । अगर ये बात सुशीला को बताई तो उसकी नसीयतें न मानने के एवज में हँगामा होना तय है ।—– ( इन्द्रा रानी )