माँ तुम अब न वैसी हो
बोलो माँ अब कैसी हो ?
उम्र हुई है अब सत्तर
खड़ी हुई मिलती दर पर
सबकी झोली देती भर
खुद की फिर भी आँखें तर
झलक रहा चेहरे पर ज़र
आँखों से दिखता कमतर
पीड़ा नें बना लिया है घर
पर नहीं उठाता कोई खर
भेज दिया बिटिया को दूर
वो भी है कितनी मजबूर
भाई की आई है हूर
लगी हुई हो तुम मजदूर
माँ तुम अब न वैसी हो
बोलो माँ अब कैसी हो ?
पूनम शुक्ला