(डॉ. नीरज भारद्वाज) हमारे समाज के बहुत से पक्ष है, जिनके बारे में विचारक समय-समय पर लिखते रहते हैं। किसी पक्ष पर हम ज्यादा विचार कर लेते है और किसी पक्ष पर कम। लेकिन पक्ष कोई भी हो बात तो सभी पर ही करनी होगी, क्योंकि समाज में हर वर्ग और हर सोच का व्यक्ति रहता है, जिसके सहयोग से समाज गति प्राप्त करता है और धीरे-धीरे एक राष्ट्र, विकसित राष्ट्र के रास्ते पर पहुंच जाता है। विचार करे तो हम पाते हैं कि भारतीय समाज को राजनीति और उच्च वर्ग ने इस तरह तोड रखा है कि वह आजादी के बाद भी नई विचारधारा के साथ सोच ही नहीं पा रहा है, बल्कि उनको आरक्षण तथा किसी नई पैंशन का वादा देकर फिर रास्ते से अलग कर दिया जाता है। कोई काम करे ना करे लेकिन पैसा बराबर मिलना चाहिए, फिर किसी नए घोटाले का इंतजार करना चाहिए। विकास के इस दौर में हर व्यक्ति और समाज को पूरा मौका मिलना चाहिए। एक साधारण सी बात है, क्या गूगल और इंटरनेट किसी एक जाति, वर्ग विशेष आदि के लिए ही खुलता है और क्या उन्हें ही जानकारी देता है, क्या मीडिया किसी एक व्यक्ति के लिए लिखता और दिखाता है। क्या मॉल क्लचर के इस युग में किसी मॉल में किसी जाति या वर्ग को विशेष छुट मिलती है, इन सभी बातों का उत्तर है नहीं फिर राजनीति किस के लिए लड रही है। उत्तर मिलता है साधारण जन के लिए साधारण जन को जब कोई स्थान ही नहीं मिल रहा तो फिर हो क्या रहा है।
इतना ही नहीं आज की भागती दौडती जिंदगी में बहुत सी नई बातें अपना स्थान बना रही है। मानवीय समाज उन बातों की ओर ध्यान भी अधिक दे रहा है। एक समय था कि हम सामान देकर सामान खरीदते थे। फिर युग बदला तो पैसे का चलन आया और पैसे देकर सामान खरीदने की परंपरा आई। समय ने एक बार फिर करवट ली और सामान खरीदने के साथ ही नई सोच का जनम हुआ और वह नई सोच यह थी कि कोई भी व्यक्ति दुकान पर जाकर सामान लेता है तो दुकानदार से उस सामान की गारंटी की बात जानता है। लेकिन दुकानदार दो टूक शब्दों में एक ही बात कहता सुनाई पडता है कि फैशन के दौर में गारंटी की इच्छा न करें, यह बात हमने अपनी दुकान के बाहर लिख रखी है। आप सामान ले या न ले और दूसरी बात बिका हुआ सामान वापिस नहीं होगा।
यहीं से शुरु होती है नई सोच की शुरुआत और लोग कैसे पैसे देकर सामान खरीदते हैं, लेकिन कोई गारंटी नहीं। युग बदला गारंटी बदली। तो फिर इस चुनावी दौर में लोग कैसे किसी पार्टी पर भरोसा करके उसके उम्मीदवारों को जीत दिला देते हैं समझ में नहीं आता, उसकी क्या गारंटी है। भारत में चुनावी दौर में टीवी, रेडियो, समाचारपत्र, पत्रिकाओं आदि पर जैसे वस्तुएं बिकती है, वैसे ही किसी भी राजनैतिक दल का वादों भरा विज्ञापन देखने को मिलता है। चुनाव समाप्त हुए नहीं कि विज्ञापन धीर-धीरे दिखने बंद होते जाते हैं। क्या फैशन के दौर में यह भी गारंटी की इच्छा नहीं रखते। किसी भी पार्टी या किसी भी नेता को वोट न देने का बटन तो अब लगा दिया गया है। लेकिन चुनावी वादों को पूरा न करने पर कोर्ट राजनैतिक पार्टी और राजनेता के प्रति क्या सख्त कदम उठायेगी यह देखने का समय भी बाकि है, क्योंकि रोज नए राजनैतिक दल खडे हो रहे हैं और रोज नए-नए चहेरे जनता के सामने आ रहे हैं। इस ओर भी एक सख्त कदम की शुरुआत होनी चाहिए। जिससे लोगों को कुछ नया करने का मौका मिले। साथ ही कुछ ऐसा भी नया होना चाहिए जिससे कि राजनेता की सदस्यता बीच में ही समाप्त हो सके। इन सभी बातों और विचारों पर हम सभी को एक नई सोच के साथ सोचना होगा। जिससे कि हम नई शुरुआत कर सकें।