ठुकराई प्रेमिका कब तक बनी रहेगी भाजपा

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सत्ता में रहने के हजार फायदे हैं, तो लाख झमेले भी। लगता है देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नेता इसी मानसिकता के शिकार हो चुके हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि पर अतिशय निभर्रता बताती है कि इसके नीति -नियंताओं का भरोसा मुद्दों व सांगठनिक क्षमता से उठ चुका है। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा की तरह वे मोदी से एक और चमत्कार की उम्मीद रख रहे हैं। क्योंकि राष्ट्रीय परिदृश्य की बात करें, तो देश के कई राज्यों में भाजपा की हालत कांग्रेस से ज्यादा खराब है। कुछ राज्यों में इसकी थोड़ी – बहुत पकड़ थी भी, तो सहयोगी संगठनों के हाथ खींच लेने से पार्टी नए सिरे से संघर्ष करने को मजबूर नजर आ रही है। दरअसल अतीत पर नजर डालें,. तो स्पष्ट है कि सहयोगी दलों की ठुकराई प्रेमिका बनने की निय ति भाजपा ने खुद स्वीकारकी। महाराष्ट्र में शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर जरूर भाजपा की स्वाभाविक मित्र औऱ भरोसेमंद साथी रही। लेकिन दूसरे दलों ने भाजपा का साथ लेकर उसका हाथ उसी प्रकार से झटक दिया, जैसे दिल भर जाने के बाद दिलफेंक आशिक अपनी  प्रेमिका को ठुकरा देता है। ऐसे दलों में बिहार का जदयू और उड़ीसा का बीजद प्रमुख है। इन क्षेत्रीय दलों ने भाजपा के साथ जो किया , वह पहले से तय था। क्षेत्रीय स्तर पर खुद को मजबूत करने के बाद अल्पसंख्यक वाटों के लालच में उनकी यह चाल राजनीतिक दृष्टि से स्वाभाविक ही कही जा सकती है। लेकिन सवाल यह है कि इस निय ति को आखिर भाजपा ने क्यों स्वीकार किया। 1990 के दशक में तब देश में गठबंधन राजनीति का दौर शुरू नहीं हुआ था। लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे तपे – तपाए नेताओं के चलते देश का एक बड़ा आधुनिक वर्ग भाजपा से उम्मीद लगाए बैठा था। इसके नेताओं की स्वच्छ छवि , वाकपटुता व स्पष्टवादिता के चलते देशवासी भाजपा से कांग्रेस का विकल्प बनने की उम्मीद करने लगे थे। लेकिन इस बीच सत्ता पाने की हड़बड़ी में भाजपा ने गठबंधन की राजनीति स्वीकार कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। पार्टी का जो समय और उर्जा समग्र भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने में लगाया जाना चाहिए था, वह इसके नेताओं ने सहयोगी दलों के पीछे घूमने में खर्च कर दिया। और सबसे बड़ी बात यह कि सत्ता के बजाय विपक्ष में रहने का नशा क्या होता है, यह जानना है, तो पश्चिम बंगाल के 34 साल के वाम शासनकाल में रहे कांग्रेसियों के इतिहास पर नजर डाल लें, सच्चाई सामने आ जाएगी।
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
तारकेश कुमार ओझा,
भगवानपुर,