आजादी के बाद देश में कम ही ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने देशवासियों में उम्मीद जगाने का कार्य किया हो। बेशक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी उनमें से एक हैँ। सेक्युलरवादी चाहे उनकी जितनी आलोचना करें, लेकिन जहां तक बात आम देशवासियों की बात है, तो गुजरात के विकास के आधार पर जनता को उम्मीद है कि जिस व्यक्ति ने अपने प्रदेश का इतना विकास किया, बेशक प्रधानमंत्री बनने पर वह देश का कुछ भला तो कर ही सकता है। वहीं भारतीय जनता पार्टी मोदी का प्रधानमंत्री बनना बस समय की अपेक्षा की बात कह कर अपना ही नुकसान कर रही है। क्योंकि ऐसे बड़बोलेपन के चलते हमेशा उसके साथ यही हुआ है। सांगठनिक समृद्धि की बात करें, तो देश के लगभग आधे राज्य में भाजपा का कोई खास जनाधार नहीं है। कांग्रेस इस मामले में काफी बेहतर स्थिति में है। इसलिए राष्ट्र हित में भाजपा नेताओं को फूंक – फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। स्वयं मोदी को भी बयानबाजी में खासा संयम बरतने की जरूरत है। स्व. वीपी सिंह के बजाय पीवी . नरसिंह राव का अनुसरण करना उनके लिए ज्यादा श्रेयस्कर होगा। जो घाघ राजनेता होते हुए भी बहुत कम बोलते थे। यही वजह है कि 1991 में बेहद विषम परिस्थितियों में प्रधानमंत्री बनने वाले राव ने अप्रत्याशित रूप से अपने पांच साल का कायर्काल पूरा कर लिया, क्योंकि किसी को वे अपने मन की थाह लेने का मौका नहीं देते थे। इसके विपरीत मोदी की तरह ही देशवासियों में उम्मीद जगाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. वीपी सिंह इस मामले में असफल सिद्ध हुए। क्योंकि बोफोर्स घोटाले पर हंगामा कर लोगों में उम्मीद जगाने वाले सिंह प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रहित के बजाय मंडल – कमंडल के चक्कर में पड़ गए। वे यह समझने में भूल कर गए कि भावुकतापूर्ण बातों से राष्ट्र नहीं चलता। इसके लिए संकल्पशक्ति, व्यावहारिक दृष्टिकोण व दूरदशिता जरूरी है। इसलिए वतर्मान परिस्थितयों में भाजपा समेत नरेन्द्र मोदी को संतुलित रवैया अपनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
तारकेश कुमार ओझा,
भगवानपुर,