हो रहा भारत निर्माण

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आज अगर कोई भी समाचार पत्र पढ़ो तो ऐसा लगता है जैसे सब और अँधियारा ही अँधियारा है। फिर भी किसी तरह अपने मन को समझते हुए जब प्रयास करती हूँ मैं अपने अंदर एक आस की ज्योत जलाने की तो तेज़ी से बदलते वक्त का आता हुआ तूफ़ान देखकर डबडब्बा ने लगती है वह  मेरी आस की ज्योति, फिर चाहे कितना भी आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच का तेल ही क्यूँ न डालती रही हूँ मैं उसमें मगर आँखों के सामने भ्रष्टाचार, गरीबी और सरे आम बढ़ते जुर्म और अत्याचार का ज़हरीला काजल चुभनें ही लगता है आँखों में और उस काजल की कालिमा भारी पड़ने लगती है उस आस की ज्योत पर, जिसे सदा अपने मन के अंदर जलाए रखने का निरर्थक प्रयास किया करती हूँ मैं निसदिन।

न जाने कहाँ जा रहे हैं हम और किस तरह से हो रहा है भारत निर्माण, जहां एक ओर महँगाई आसमान छू रही है, तो दूसरी और बेरोज़गारी का दानव अपना मुँह बायें खड़ा है। यह काफी न था शायद तो इस महान देश के तुच्छ नेताओं ने गरीबी मिटाने और ग़रीबों का मज़ाक़ बनाने को 5 रुपये और 12 रुपये में खाना मिलने का षड्यंत्र गढ़ा है। जहां एक और अमीर और अमीर होता जा रहा है और दूसरी और गरीब और गरीब होता जा रहा है। छत्तीसगढ़ में पानी में रसायनिक तत्वों की अधिक मात्रा से हो रहे हैं गाँव के गाँव अपंग मगर क्या फर्क पड़ता है अपना थैला तो भरा है। कहो हो रहा भारत निर्माण, जहां लोकतन्त्र अब भोगतंत्र हो रहा है।

मगर हमने भी तो ली है ना एक कसम हम भी नहीं सुधरेंगे चाहे मर जाएं मगर सरकार भरोसे ही जीयेंगे। जो कुछ करे वह सरकार करे, हम क्यूँ कुछ करें हमारा तो काम है सिर्फ दूसरों के मीनमेख निकाल कर बस यूँ ही अपनी भड़ास निकालना, चार गालियां देना और फिर उसी ढर्रे पर रेंगने लगना ठीक उसी नाली के कीड़े की भांति जिसे साफ सफ़ाई कभी पसंद नहीं आती। पसंद आता है यदि कुछ तो वह केवल एक ही रस निंदा रस, जिसका बड़े चाव से रसपान करते हैं सभी, मगर जब बात आती है श्रमदान की तो सब बगुले झाँकते है। न जाने क्यूँ, यह सब भूल जाते हैं,कि देश की उन्नति का ठेका केवल सरकार या नेताओं का नहीं है। कुछ ज़िम्मेदारी जनता की भी है। अगर नेता बेईमान है, तो जनता भी कम नहीं है।

भ्रष्टाचार कोई ऊपर से नहीं आया है कहीं न कहीं उसे हम ने ही बढ़ाया है। आज भी अपनी सुविधा के लिए हम खुद ही आगे बढ़कर रिश्वत देते हैं। समान ख़रीदने के बाद रसीद नहीं लेते हैं। ऐसे न जाने कितने काम है जो हम कभी नहीं करते हैं। क़ानून है, सख़्त से सख़्त क़ानून है हमारे देश में, मगर हम स्वयं ही उसका पालन नहीं करते हैं और जब कोई हादसा या दुर्घटना घट जाती है तो मूक बधिर बने देखते हैं या चार दिन निंदा कर फिर अपने-अपने रास्ते चल देते हैं। क्यूंकि हमने तो कसम खाई है ना…हम नहीं सुधरेंगे एक बार अपना महत्वपूर्ण वोट देकर जो गलती की है उसे ही बार-बार दौहरायेंगे। फिर जब ज़िंदगी का बेढ़ागर्क हो जाएगा तो मातम मानयेंगे।

अरे माना कि हर मुद्दे में सरकारी सहायता और क़ानून की जरूरत होती है। यदि वह साथ हो तो बात आसानी से बन सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है, मगर क्या हमारी ज़िंदगी से जुड़ी छोटी-छोटी समस्याओं से भी हम खुद नहीं निपट सकते ? क्या इतने निर्भर हो गए हैं हम सरकार और प्रशासन पर कि एक कदम भी उनके बिना नहीं चल सकते। ज्यादा कुछ नहीं तो अपने-अपने घरों से या मुहौले से हर प्रकार की गंदगी फिर चाहे वह कचरे की गंदगी हो या असामाजिक तत्वों की को हटाकर उसे साफ सुथरा सभ्य लोगों से युक्त एक परिवार जैसा तो बना ही सकते है हम, आखिर हमारा समाज भी तो हमारे लिए एक प्रकार का परिवार ही है ना ? तो हम शुरुआत तो कर ही सकते हैं। मैं यह नहीं कहती ऐसा करने मात्र से ही सारी समस्याओं से निजात पायी जा सकती है क्योंकि इस सब से गरीबी दूर नहीं होगी दिन भर मेहनत करके गुज़र बसर करने वाले इंसान के पास इतना समय ही कहाँ होता है कि वह इन सब बातों पर ध्यान दे सके मगर जो सामान्य या मध्यम वर्गीय परिवार के लोग है उसके आसपास वह तो इस काम में अपना योगदान दे ही सकते हैं जैसे अपने घर काम करने आने वाली बाई के एक बच्चे को तो कम से कम हम उसके सरकारी स्कूल की फ़ीस तो दे ही सकते हैं।

क्या आपको नहीं लगता इस सब से यदि एक भी बच्चे को हम बाल श्रम से बचा कर शिक्षा की और अग्रसर कर सकें तो इसमें हमारे ही देश का भला है। मगर नहीं वह भी सरकार ही करे हम क्यूँ करें कुछ ऐसी बहुत सारी छोटी बड़ी बातें हैं जिन पर ज़रा ध्यान देकर हम खुद अपने ही घर परिवार से देश के सभ्य नागरिक होने का फर्ज़ अदा कर सकते है और ज्यादा कुछ नहीं तो एक गरीब परिवार की सहायता कर इंसानियत तो दिखा ही सकते हैं। ज़रा सोचिए इसी तरह यदि हर कोई एक गरीब परिवार को बचा ले तो स्थिति क्या से क्या हो सकती है। मगर नहीं हम क्यूँ बिना मतलब के कुछ करें। हमने क्या ठेका लिया है ग़रीबों को पालने का सरकार करे जो करना है यह तो उसका फर्ज़  बनता है। और फिर यदि सरकार वोट के लालच में ही सही, सरकार गलती से कुछ अच्छा कर दे तो उसे बरबाद भी हम ही करें तुरंत और फिर गालियां देते और मातम मनाते कहेंगे हम, हो रहा भारत निर्माण…

चलते-चलते एक बात साफ करना चाहूंगी मैं किसी पार्टी विशेष के पक्ष में नहीं हूँ न मेरा  काँग्रेसी से कोई वास्ता है न बीजेपी से कोई संबंध ना ही अन्य किसी पार्टी के आने या जाने से मुझे कोई फर्क पड़ता है इसलिए कृपया इस आलेख को निष्पक्ष होकर पढे और समझे क्यूंकि मैंने यह निष्पक्ष भाव से ही लिखा है।  जय हिन्द…

पल्लवी सक्सेना

( लंदन )