किसी की दिल से दिल्लगी !
किसी के दिल को लग गई !!
तुझे हक़ मिला नहीं दिल्लगी का
किसी के दिल से ना खेल
खुद का दिल बहलाने के लिए
की किसी दिन ख़ुदा ने दिल्लगी
तेरी दिल्लगी बन जायेगी दिल की लगी
ना सुखेगे अश्क ,तरसेगा दिल के लगी के लिए
सच का गाँस
गले में डाले फाँस
क्लेश जनक !!
थी वो पत्थर
रूबी-पन्ना सरीखी
मान ना दिया !!
थी ही पत्थर
गढ़ते मन-मूर्ति
ज़ज्बात लगा !!
उदास जिया
भाये न ऋतुराज
लागे वो बैरी !!
रास्ता नहीं आसां
पथरीले डगर
पाने में लक्ष्य !!
ना तेरी हथेली अलग है
ना उसकी हथेली अलग है
ना प्यार का अंदाज़ अलग है
ना प्यार का ज़ज्बात अलग है
सारा खेल किस्मत-लकीरों का है ?
कोई किसी को क्यूँ कमतर आंकते ?
कमतर = निकृष्ट