भक्त और भगवान के बीच सेतु श्री हनुमान

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प्रो. उर्मिला पोरवाल सेठिया (बैंगलौर)
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार चार युग हैं-सतयुग, त्रेता, द्वापर व
कलियुग प्रत्येक युग में अलग-अलग ईष्वर अवतार, महापुरुष व नायक रहे हैं।
जिक्र अगर त्रेता नायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी का करें तो
उनके जीवन व चरित्र का गुणगान-सेवा, वीरता व विनम्रता के पुंज श्री
हनुमान जी के उल्लेख के बिना अधूरा ही माना जाएगा।
भगवान शिव के रूद्रावतारों में एक हैं हनुमानजी। पुराणों में हनुमानजी के
जन्म व अवतार का उल्लेख एवं लीलाओं का वर्णन विस्तार से मिलता है।
मान्यता है कि नरक चतुर्दशी यानी कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी के दिन हनुमान
जी का जन्म हुआ था। कथा है कि जब अत्यंत अदभुत लीला करने वाले गुणशाली
भगवान विष्णु ने शिव जी को मोहिनी रूप का दर्शन कराया, तब वे कामदेव के
बाणों से आहत हुये और क्षुब्ध हो उठे। उस समय उस परमेश्वर ने अपना ओज
स्खलन किया तब सप्त ऋषियों ने उस ओज को पत्रपुटक में रखा शिव जी ने
रामकार्य के लिए ही आदर पूर्वक उनके मन में यह प्रेरणा की। तब उन
महर्षियों ने शंभु के उस ओज को गौतम कन्या अंजनी के कान द्वारा उसके उदर
में स्थापित कर दिया। तब समय आने पर उस गर्भ से शंभु ने महान बल, बुद्धि,
पराक्रम के साथ तेजस्वी एवं वानर रूपी शरीर धारण करके जन्म लिया।
हनुमानजी का अवतार स्वामी के कार्य करने एवं उनकी सेवा के लिए ही है।
पृथ्वी पर अपने स्वामी श्रीराम का पूरा कार्य करके राम-भक्ति की स्थापना
की और स्वयं भक्तों में भक्त शिरोमणि (अग्रण्य) होकर सीताराम को
सुख-शांति, धैर्य व साहस प्रदान किया। श्री हनुमान, लक्ष्मणजी के
जीवनदाता, संपूर्ण देवताओं के गर्वहारी और भक्तों का उद्वार करने वाले
एवं उनका संकट हरण करने वाले है। महाबीर हनुमान हमेशा रामकार्य में तत्पर
रहने वाले, लोक में रामदूत नाम से विख्यात, दैत्यों के संहारक और
भक्तवत्सल है।
कुछ कथा प्रसंगों में जैसे भगवान कृष्ण को प्रसंग भेद से वासुदेव नंदन,
नंदन सुवन, गिरिधारी, रास बिहारी, गोवर्धनधारी, लीलाधारी, बांके बिहारी,
रणछोड़, दामोदर, यशोदानंदन, देवकीनंदन आदि आदि नामों से जाना जाता है।
वैसे ही राम भक्त के हनुमान जी के विषय में भी समझना चाहिए। जैसे
शंकरसुवन केसरी नंदन, पवन तनय, वायुनंदन, आन्जनेय, अंजनी नंदन, केसरी
नंदन,  रूद्रावतार, ऐश्वर्यशाली शक्तिशाली, महाबलशाली एक मुखी, पंचमुखी,
सप्तमुखी, अंजनी कुमार, आदि आदि। इस प्रकार भक्त शिरोमणि हनुमान जी का
अवतार अनेक रूपों में हुआ। मुख्यतः बजरंग बली के दो रूप बताए गए हैं। दास
हनुमान और वीर हनुमान-दास हनुमान राम के आगे हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं और
उनकी पूंछ जमीन पर रहती है जबकि वीर हनुमान योद्धा मुद्रा में होते हैं
और उनकी पूंछ उठी रहती है। दाहिना हाथ सिर की ओर मुड़ा हुआ रहता है।
कहीं-कहीं उनके पैरों तले राक्षस की मूर्ति भी होती है।
श्री हनुमान जी ने अपनी अद्भुत वीरता, सेवा आदर्श, अनन्य भक्ति, अनंत
सद्गुणों से केवल अपना ही जीवन सफल नहीं किया बल्कि जिस लोक में वे जिनके
अंश थे, उन भगवान शंकर, सर्व पूज्य, पवन देव कपि श्रेष्ठ, केशरी तथा माता
अंजनी की परमोज्जवल कीर्ति का विस्तार भी किया।
हनुमानजी को भक्ति और शक्ति का बेजोड़ संगम बताया गया है। हनुमानजी का
शुमार अष्टचिरंजीवी में किया जाता है, यानी वे अजर-अमर देवता हैं।
उन्होंने मृत्यु को प्राप्त नहीं किया। कहते है कि भगवान राम त्रेतायुग
में धर्म की स्थापना करके पृथ्वी से अपने लोक बैकुण्ठ चले गये लेकिन धर्म
की रक्षा के लिए हनुमान को अमरता का वरदान दिया। इस वरदान के कारण हनुमान
जी आज भी जीवित हैं और भगवान के भक्तों और धर्म की रक्षा में लगे हुए
हैं। हनुमान जी के जीवित होने के प्रमाण समय-समय पर प्राप्त होते रहें
कलियुग में हनुमानजी ही संकट मोचक हंै, शास्त्रों का ऐसा मत है कि जहां
भी राम कथा होती है वहां हनुमान जी अवश्य होते हैं। इसलिए हनुमान की कृपा
पाने के लिए श्री राम की भक्ति जरूरी है। जो राम के भक्त हैं हनुमान उनकी
सदैव रक्षा करते हैं।
हनुमान जयन्ति के सुअवसर पर प्रस्तुत है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित !!
श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुवर बिमल जसु,जो
दायकु फल चारि।
बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरो पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु
मोहिं,हरहु कलेश विकार।★अर्थ》→ शरीर गुरु महाराज के चरणकमलों की धूलि से
अपने मन रुपी दर्पण को पवित्रकरके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन
करता हूँ,जो चारों फल धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष को देने वाला हे।→ हे पवन
कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं,कि मेरा शरीर और
बुद्धि निर्बल है।मुझे शारीरिक बल,सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे
दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
ऽऽजय हनुमान ज्ञान गुण सागर,जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★अर्थ 》→ श्री
हनुमान जी!आपकी जय हो।आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय
हो!तीनों लोकों,स्वर्ग लोक,भूलोक औरपाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
ऽऽराम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★अर्थ》→ हे पवनसुत
अंजनी नंदन!आपके समान दूसरा बलवान नही है। हे अंजनी के पुत्र पवन सुत नाम
से भी जाने जाते हो★
ऽऽमहावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★अर्थ》→ हे महावीर
बजरंग बली!आप विशेष पराक्रमवाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और
अच्छी बुद्धि वालो के साथी,सहायक है।★
ऽऽकंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★अर्थ》→ आप सुनहले
रंग,सुन्दरवस्त्रों,कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों सेसुशोभित हैं।★
ऽऽहाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★अर्थ》→ आपके हाथ मे
बज्र और ध्वजा है औरकन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
ऽऽशंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★अर्थ 》→ हे शंकर के
अवतार! हे केसरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना
होती है।★
ऽऽविद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर॥7॥★अर्थ 》→ आप
प्रकान्ड विद्या निधान है,गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम
काज करने के लिए आतुर रहते है।★
ऽऽप्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★अर्थ 》→ आप
श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है।श्री राम,सीताऔर लखन आपके हृदय
मे बसे रहते है।★
ऽऽसूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★अर्थ》→ आपने
अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका
को जलाया।★
ऽऽभीम रुप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★अर्थ 》→ आपने
विकराल रुप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों
को सफल कराया।★
ऽऽलाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★अर्थ 》→ आपने
संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित
होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
ऽऽरघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★अर्थ 》→ श्री
रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा कीऔर कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे
भाई हो।★
ऽऽसहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★अर्थ 》→ श्री
राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से
सराहनीय है।★
ऽऽसनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★अर्थ》→श्री
सनक,श्री सनातन,श्री सनन्दन,श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता
नारद जी,सरस्वती जी,शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
ऽऽजम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★अर्थ 》→
यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक,कवि विद्वान,पंडित या कोई भी आपके यश
का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
ऽऽतुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★अर्थ 》→ आपनें
सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया ,जिसके कारण वे राजा बने।★
ऽऽतुम्हरो मंत्र विभीषण माना,लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥★अर्थ 》→ आपके
उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने,इसको सब
संसार जानता है।★
ऽऽजुग सहस्त्र जोजन पर भानू,लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★अर्थ 》→ जो
सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो
हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।★
ऽऽप्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★अर्थ 》→
आपने श्री रामचन्द्रजी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया,इसमें
कोई आश्चर्य नही है।★
ऽऽदुर्गम काज जगत के जेते,सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★अर्थ 》→ संसार
मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो,वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
ऽऽराम दुआरे तुम रखवारे,होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥21॥★अर्थ 》→ श्री
रामचन्द्र जी के द्वार के आप
रखवाले है,जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी
प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
ऽऽसब सुख लहै तुम्हारी सरना,तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥★अर्थ 》→ जो भी
आपकी शरण मे आते है,उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक
है,तो फिर किसी का डर नही रहता।★
ऽऽआपन तेज सम्हारो आपै,तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★अर्थ 》→ आपके सिवाय
आपके वेग को कोई नही रोक सकता,आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
ऽऽभूत पिशाच निकट नहिं आवै,महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★अर्थ 》→ जहाँ महावीर
हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है,वहाँ भूत,पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
ऽऽनासै रोग हरै सब पीरा,जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥★अर्थ 》→ वीर हनुमान
जी!आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
ऽऽसंकट तें हनुमान छुड़ावै,मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★अर्थ 》→ हे
हनुमान जी! विचार करने मे,कर्म करने मे और बोलने मे,जिनका ध्यान आपमे
रहता है,उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
ऽऽसब पर राम तपस्वी राजा,तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥★अर्थ 》→ तपस्वी राजा
श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है,उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर
दिया।★
ऽऽऔर मनोरथ जो कोइ लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★अर्थ 》→ जिसपर आपकी
कृपा हो,वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई
सीमा नही होती।★
ऽऽचारों जुग परताप तुम्हारा,है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★अर्थ 》→ चारो
युगों सतयुग,त्रेता,द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है,जगत मे
आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
ऽऽसाधु सन्त के तुम रखवारे,असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★अर्थ 》→ हे श्री
राम के दुलारे ! आप
सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
ऽऽअष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ,अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★अर्थ 》→ आपको
माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है,जिससे आप किसी को भी आठों
सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
ऽऽराम रसायन तुम्हरे पासा,सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★अर्थ 》→ आप निरंतर
श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है,जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों
के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
ऽऽतुम्हरे भजन राम को पावै,जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★अर्थ 》→ आपका भजन
करने सेर श्री रामजी प्राप्त होते है,और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते
है।★
ऽऽअन्त काल रघुबर पुर जाई,जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★अर्थ 》→ अंत समय
श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति
करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
ऽऽऔर देवता चित न धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★अर्थ 》→ हे हनुमान
जी!आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है,फिर अन्य किसी देवता की
आवश्यकता नही रहती।★
ऽऽसंकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★अर्थ 》→ हे वीर
हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है,उसके सब संकट कट जाते है और सब
पीड़ा मिट जाती है।★
ऽऽजय जय जय हनुमान गोसाईं,कृपा करहु गुरु देवकी नाई॥37॥★अर्थ 》→ हे
स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो,जय हो,जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी
के समान कृपा कीजिए।★
ऽऽजो सत बार पाठ कर कोई,छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★अर्थ 》→ जो कोई इस
हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे
परमानन्द मिलेगा।★
ऽऽजो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★अर्थ 》→ भगवान
शंकर ने यह हनुमान
चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है,कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता
प्राप्त होगी।★
ऽऽतुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★अर्थ 》→ हे नाथ
हनुमान जी! तुलसीदास
सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
पवन तनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप। राम लखन सीता सहित,हृदय बसहु
सुरभुप॥★अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार!आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है।हे
देवराज! आप श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
सर्वमान्य है कि माता अंजनि के लाल केसरी नंदन व पवनसुत श्री हनुमान जी
का जन्म भगवान श्रीराम के कार्य सफल करने, सेवा करने व भक्तों की रक्षा व
कल्याण हेतु हुआ। भक्त और भगवान के बीच सेतु श्री हनुमान का जो मनुष्य
भक्तिपूर्वक श्रद्धायुक्त होकर हनुमान जी के इस पराक्रम चरित्र-चालीसा का
पठन-पाठन करता है तथा दूसरों को सुनाता है वह सभी प्रकार के भोगों को भोग
कर मोक्ष को प्राप्त करता है। सभी प्रकार के दुखों, कष्टों, पीड़ाओं व
व्याधियों से छुटकारा मिलता है। रोग, दोष, भूत, प्रेत, पिशाच आदि से
मुक्ति प्राप्त होती है। वीरता, सेवा व कल्याण के प्रतीक हैं श्री राम
भक्त हनुमान। जय श्री राम!!