चल मेरे हमनशीं चल

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चल मेरे हमनशीं चल अब इस चमन मे अपना गुजारा नही,
बात होती गुलोँ तक तो सह लेते हम अब तो काँटो पे हक़ भी हमारा नही”

“कभी चाहा तुझे ऐसा की रब जैसा पूजा, किस जगह मैने तुझे पुकारा नही,
यु दर्द देकर क्या मिला तुजे? कह देते की तुमसे मिलना अब गँवारा नही”

“अब चला हु घर से ये सोचकर कि इस साहिल का कोई किनारा नही,
ढुंढुगा उसे ईस नजर से ना पा सका तो अब कोई नजारा नही”

ऍ जालिमो अपनी किस्मत पे इतना नाज ना करो.
वक्त तो बदलता ही रहता है,

वो सुनेगा यकीँनन सदाऐँ ” अकेले की,
क्या खुदा सिर्फ तुम्हारा है, हमारा नही?

by: Ashutosh Kumar