चुनाव – प्रीति एम

चुनाव
सामान्य अर्थ में, कई चीज़ों में से किसी एक सबसे अच्छी चीज़ को चुनना, चुनाव कहलाता है|
सृष्टि ने चुनाव का गुण, छुटपन से ही हमारे अंदर डाल रखा है| अच्छी चीज़ मिले और ज़्यादा मिले किसे पसंद नहीं…? अच्छी चॉकलेट, ज़्यादा शरबत, अच्छा जीवन साथी, बड़ा घर… सब का चुनाव हम सोच-समझकर करते हैं| फिर अपने नेताओं को चुनने समय हमारी बुद्धि किधर चली जाती है…? आज के युग में चुनाव एक भारी शब्द बन गया है जिसका अर्थ सिर्फ राजनीति से ही लगाया जाता है|
चुनाव दो शब्दों के मेल – चुन और नाव से बना है| जिसमें जनता अपनी वैतरणी पार कराने के लिए नेता रूपी माँझी चुनती है| पहले चुनाव का शासन काल लंबा हुआ करता था, जिसे अब पाँच साल का कर दिया गया है| ये चुनाव हमारे दिग्गज नेताओं के लिए पंचवर्षीय त्यौहार जैसा है, जिसमें जितने के लिए वे जमीन-आसमान एक कर देते हैं| वे येन-केन-प्रकारेण गद्दी चाहते हैं| चुनाव जीतने के बाद वे सरकारी संपत्ति को निजी संपत्ति समझकर अपने और अपनों के हित के लिए देश को गर्त में गिराने से भी पीछे नहीं हटते| नेताओं की इन चालाकियों को ध्यान में रखते हुए हमारे संविधान में कई तरह के परिवर्तन किए गए है, परंतु सारा सच तो जागरूक तो हम जनता को ही होना होगा|
हमारे संविधान ने हमें 18 साल की उम्र में मताधिकार दिया है| वोट डालने के पहले हमें जाति-धर्म-नाते-रिश्ते से ऊपर उठकर देश हित का ध्यान रखते हुए, चुनाव में खड़े हुए नेताओं की जन्म कुंडलियों की कम-से-कम एक बार जाँच तो ज़रूर कर लेनी चाहिए| किसी तरह के लालच में आकर अपना वोट बेचकर अगले पाँच साल पछताने से अच्छा है कि समय रहते समझदारी से काम लिया जाए|
हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, और इसे बनाए रखने के लिए जनता को अपने अधिकार का सही प्रयोग करना अत्यावश्यक है| यह हमारे लोकतंत्र की नींव है| नींव के हिलने से बड़ी-बड़ी इमारतों के गिरने का डर बना रहता है| इस नींव को मज़बूत बनाए रखना हम सब का कर्तव्य है|
प्रीति एम.
बैंगलोर