कश्मीर :- कल
कभी स्वर्ग था जो धरती पर,
खुशी जहाँ लहराती थी,
प्रकृति अपना वैभव जिसपे,
दोनों हाथ लुटाती थी,
हजरतबल और अमरनाथ को,
एक सा आदर मिलता था,
पुष्प शांति का और सौहार्द का,
जिसके मुकुट में खिलता था,
कर्मभूमि ॠषि कश्यप की थी,
शंकराचार्य का साधना स्थल,
एक तरफ पर्वत विशाल थे,
एक तरफ था निर्मल जल,
दूर-दूर घाटी में फैले,
सुंदर, रमणीय कानन थे,
मनमोहक, नयनाभिराम,
मानव निर्मित उपवन थे,
झील के वक्ष पर क्रीड़ारत,
नन्हें व विशाल शिकारे थे,
तिलक सूर्य का भाल पे था,
हाथों पर चाँद सितारे थे,
परंतु ऐसी आँधी आई,
परिदृश्य ही सारा बिखर गया,
जो कभी स्वर्ग था धरती पर,
कश्मीर वो मेरा किधर गया,
कश्मीर :- आज
मेरे प्यारे कश्मीर में आज,
ये कैसा मातम छाया है,
कहीं धमाका है बम का,
कहीं संगीनों का साया है,
जहाँ दूध की नदियां थीं,
अब वहाँ खून के धारे हैं,
दो भाईयों के बीच खड़ीं,
ये नफरत की दीवारें हैं,
वरदानों की धरती पर,
रहने वाले अभिशापित हैं,
कितने ही परिवार आज,
अपने घर से निर्वासित हैं,
विश्वास रहा ना आपस में,
अब संदेहों ने घेरा है,
सुख का सूरज डूब गया,
छा रहा घोर अँधेरा है,
सड़कों पर हर रोज़ तिरंगे,
यहां जलाए जाते हैं,
ताकत में अँधे होकर,
मासूम सताए जाते हैं,
सदियों का भाईचारा सारा,
जीते जी दफना डाला,
इस सुंदर कश्मीर को हमने,
स्वर्ग से नरक बना डाला,
भरत मल्होत्रा।
मुम्बई महाराष्ट्र