कुंडलिया छंद – शांति पुरोहित

shanti purohit

मावट बरसे शरद ऋतु , घन गरजे घनघोर
धूप,दूज का चाँद बन , घटा घटा चहु ओर
घटा घटा चहु ओर , हड्डियाँ थरथर काँपे
लहर शीत लहराय ,मुट्ठियाँ ठिठुरन नापें
कहत शांति कविराय, माघ बारिश ना होती
कोहरा चादर ले , हरित हरीतिमा सोती