कविता स्वरचित – शान्ति पुरोहित

shanti purohit

सुनहरे क्षण एक क्षण में गुजर गये पता ही नही चला कहाँ निकल गये कहे जब तक उन क्षणों का हाल मन से उससे पहले ही दगा दे चले गये मिले लंबे इंतजार  के बाद वो क्षण पलक झपकते ही ओझल वो हो गये इच्छा कब पूरी हुई पता ही न चला मीठे क्षण कब खिसके निकल गये कुछ क्षण आकर केक्ट्स की मानिंद  दिल बगिया पर शूल से चिपक गये ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^शान्ति पुरोहित