डर और एकता

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(रीतू सिंह कौरव) डर,बहुत बुरी चीज होती है डर | डर के कारण इंसान ना तो सच बोल पाता है और ना ही सच का साथ दे पाता है ,बस एक रोबोट की तरह जीता रहता है , डरता रहता है और रोज थोडा और मर जाता है |
हैरानी तो हमे इस बात की होती है की कैसे चार गंदे से कपडे पहने,बदबू मारते,गुंडे कहे जाने वाले कामचोर लोग,सैंकड़ों या हजारों लोगो को डरा लेते है ?
हम सब कैसे भूल जाते है कि कुछ रेशो को साथ मिला कर यदि गूँथ दिया जाए तो वे रेशे एक मजबूत रस्सी बन जाते है | जब कुछ रेशे मिल कर एक मजबूत रस्सी बना सकते है तो क्या हम और आप मिल कर अपने आस पास फैली इस बुराई का अंत नही कर सकते है ?
बचपन में सबने एक नारा सुना होगा ” संगठन में शक्ति है ” शायद स्कूल में ये नारा हमे इसीलिये सिखाया जाता है ताकि बड़े हो कर हम सब संगठित हो कर काम कर सकें | अंग्रेज भी हम पर राज ना कर पाते यदि सारे हिन्दुस्तानी पहले ही संगठित होते | आज अंग्रेजों की जगह नेताओं, बाहुबलियों और शक्तिशाली धर्मप्रमुखों ने ले ली है पर हम आज भी वैसे ही है |
आज भी यदि किसी दूसरे पर अत्याचार हो रहा हो तो बाकि सारे सोचते है ” जाको मरे सो रोवे मंगलदास मढ़ी में सोवे ” | पर क्या इस सोच के साथ हम सभी एक सुरक्षित और भयरहित समाज का हिस्सा बन सकते है ? नही यह तभी संभव है जब समाज में फैली इस गंदगी को जड़ से मिटाने के लिए हम सब एक साथ मिल कर जुट जाये फिर शायद किसी के मन में डर भी ना रहे |