( सलीमा आरिफ )
ख़ता हुई इतनी बस,
पूछा नहीं उससे पहले,
तेरा नाम,ज़ात,नीयत क्या
हैं?
वरना लों लगाने से
पहले पूछ लेते/
तेरा ख़ुदा कौन हैं?
उसका नाम हैं?
रो में बह गये हम
और दिल के हाथों
हार गए/
वरना पूछ लेते ख़ुद
से ही—
मेरे ईमान पर यह
किसका पहरा हैं?
सोचा नहीं एक पल भी
और दिल से मार खा बैठे!
हो गए उसके जिसकी
गली में सूरज,आसमां, मेरी
गली जैसे थे,
और मोहल्लें में बने घर ,दरों दीवार
दरख़्त भी मेरे जैसे हैं,
कुएँ से पानी भरती
भाभी,चाची,मुन्नी
एक सामान ,उनकी
ठिठोलियाँ,लिबास,गुंधी चोटियाँ
स्कूल में काम करने वाली बुआ ,जैसी ही है/
तो फिर…
मेरे लिए जो ख़ुदा हैं
तेरे यहाँ वह भगवान कैसा हैं?
जिल्द का रंग एक जैसा हैं,ज़ुल्फ़ों का रंग भी
गहरा हैं,
चलने,सोचने,समझने का
ढंग भी एक जैसा हैं।
सब कुछ हैं एक समान,इकसार,सालिम,
फिर हमारी मोहब्बत में
यह मज़हबीं
शक शुबहा कैसा हैं? .
पूछा नहीं उससे पहले,
तेरा नाम,ज़ात,नीयत क्या
हैं?
वरना लों लगाने से
पहले पूछ लेते/
तेरा ख़ुदा कौन हैं?
उसका नाम हैं?
रो में बह गये हम
और दिल के हाथों
हार गए/
वरना पूछ लेते ख़ुद
से ही—
मेरे ईमान पर यह
किसका पहरा हैं?
सोचा नहीं एक पल भी
और दिल से मार खा बैठे!
हो गए उसके जिसकी
गली में सूरज,आसमां, मेरी
गली जैसे थे,
और मोहल्लें में बने घर ,दरों दीवार
दरख़्त भी मेरे जैसे हैं,
कुएँ से पानी भरती
भाभी,चाची,मुन्नी
एक सामान ,उनकी
ठिठोलियाँ,लिबास,गुंधी चोटियाँ
स्कूल में काम करने वाली बुआ ,जैसी ही है/
तो फिर…
मेरे लिए जो ख़ुदा हैं
तेरे यहाँ वह भगवान कैसा हैं?
जिल्द का रंग एक जैसा हैं,ज़ुल्फ़ों का रंग भी
गहरा हैं,
चलने,सोचने,समझने का
ढंग भी एक जैसा हैं।
सब कुछ हैं एक समान,इकसार,सालिम,
फिर हमारी मोहब्बत में
यह मज़हबीं
शक शुबहा कैसा हैं? .