डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला (हंसराज कॉलेज)
जिसे देखो, जहाँ देखों, घर में, बाहर, पार्क में, मेट्रो में नशे की बातें करते
नज़र आते हैं। प्रायः समाचारपत्रों, न्यूज चैनलों पर भी यह देखने को मिलता है
कि अमुख दिन तीन नशेबाजों ने सोते हुए लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी, तीन पुलिस
वाले नशाबाजों की चपेट से उड़ गए। पिछले दिनों मोदी जी का बयान आया कि
इन बढ़ते नशेबाजों पर सख्ती बरतनी पड़ेगी। वास्तव में ये लोग इस तरह की
हरकतें करते-फिरते हैं, वे नशे का अर्थ ही नहीं जानते। अक्ल के अंधे, कानों से
बहरे और आँखों से अंधे लोगों को नशे का अर्थ पता हो, तो शायद ऐसी घटनाएँ ही
नहीं घटती।
नशे का अर्थ होता है- मस्ती, जनून। किसी भी काम को करने का जुनून,
सनक, मस्ती का प्याला बन जाता है, जब हम सच्चे मन से उसमें लगते हैं।
पढ़ाई का भी छात्रों में एक जनून होता है, जिसमें वह अपना सारा ध्यान दूसरी
जगह से हटाकर एकाग्रचित होकर उसमें लग जाते हैं और सफलता उनके कदम
चूमने पर मजबूर हो जाती है। सफलता जिसके कदम चूमे वह कहलाता है सच्चा
नशेबाज, जो खुद को न संभाल सके वह कहलाता है केवल पाप। धरती पर बने
बोझ। गांधी जी को नशा ही चढ़ा था जो अपनी अच्छी खासी वकालत छोड़कर देश
की सेवा में अर्पित हो गए। उन्हें मानव सेवा ही मस्ती देनी लगी, जिसका नशा
उन पर अंत तक चढ़ा रहा। वहीं भगतसिंह चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल
और राज गुरू थे, जिन्होनें अपने हँसते-हँसते फाँसी का फँदा गले लगा लिया।
भारत जैसे देश में जहाँ जाने कितने ऐसे लोगों का ब्यौरा मिल जाएगा, जिन्होंने
हँसते-हँसते देश के लिए कुर्बानी दे दी। पत्रकारों ने अपना घर फूँककर पत्रकारिता के
माध्यम से लोगों को देश के प्रति सचेत किया। महावीर प्रसाद द्विवेदी,
प्रतापनारायण मिश्र, प्रेमचंद, बालमुकुंद, मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपत राय,
पं. दीनदयाल आदि के कार्य को मस्ती का ही नाम दिया जाता है। हंसराज कॉलेज
के भूतपूर्व प्राचार्य स्वर्गीय शांति नारायण की सनक को देखों जो छात्रों को पढ़ने
और सोने के लिए अपना ऑफिस तक दे देते थे। हमेशा छात्रों को सुविधाएँ दिलाने
के लिए तत्पर नज़र आते थे। आज भी उनके कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करने
वाले प्राचार्यों और अध्यापकों की कमी नज़र नहीं आती हैं। उनके सहयोगियों ने
उन्हीं की बातों को अपनाकर शिक्षा जगत में नाम कमाया है। पद्मश्री स्वर्गीय
जी.पी. चोपड़ा जी भी अपने कार्यों के जनून के लिए सदैव याद किए जायेंगे। छात्रों
के लिए लड़ते उनके हित में जीवन लगा देने वाले श्रीराम अरोड़ा जी, सत्यपाल जी
आज भी सेवानिवृत होने पर अपनी सनक में न जाने कितने लोगों को जीवन दान
दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी जी को आज देखें और सुनें तो पता चलता है कि नशा क्या
होता है। वह आज प्रत्येक भारतीय को यह कहते हैं कि अगर आप 15 घंटे काम
ईमानदारी से करों तो मैं 16 घंटे काम करूँगा। लेकिन हम ढीले बंधे लड्डू की तरह
उनकी बात पर हँस भर देते हैं। मोदी जी के जुनून को देखकर सभी मंत्रालयों के
आलसी अफसरों के तज़ाजिए ठंडे नज़र आने लगे, उनका पानी बहने लगा और
समय पर ऑफिस पहुँचने को बाध्य होनें लगे। इसे कहते हैं नशा। देश के प्रति,
समाज के प्रति लगकर दिन-रात सेवा-भाव बनाए रखो। किस तरह देश बने, लोगों
में देश के प्रति लगाव पैदा हो। अपने ही देश के लोग जब ऐसे नेशे को छोड़कर
किसी अन्य मादकता की सोच में पड़ते हैं, तो बड़ी घृणा उत्पन्न होती है। हम
शिक्षित-बुद्धिजीवी होने पर भी किसी ऐसे कार्य में नहीं लगते जिससे समाज पर
मस्ती का आलम छा जाए। वह नशा क्या जो केवल खुद का भी भला न कर सके,
रसातल में ले जायें, वह परिवार, समाज और देश को क्या देगा।
कैलाश सत्यार्थी का नशा बाल-मजदूरी को खत्म करने का भाव लिए है।
उनके अथक प्रयासों और जुनून को देखकर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। मलाला
यूसुफ ने बालिका शिक्षा के अधिकार से विश्व में नाम कमाया। उनका यह जुनून
हमें लगातार प्रेरित करता है कि बिना सच्चे भाव, सनक से कोई भी कार्य संभव
नहीं होता है।
ना जाने किस अंधी सोच के कारण हम शब्दों के मूल अर्थ को खोते जा रहे
हैं। हमारे लिए केवल शब्द अक्षरमात्र बनकर रह गये हैं। हम उनको परम्परागत,
रूढिगत अर्थों में ही देखने का प्रयास करते हैं। जबकि उन शब्दों के अर्थ को
समझकर अपनाकर हम अपना जीवन ही बदल सकते हैं। मेरे युवा मित्रों! आज से
ही कमर कसकर गाण्डीव उठा लो, ऐसे नशे के आदी बनो, जिस पर देश अभिमान
करे, माता-पिता गद्गद् हो उठे, तुम रहो ना रहो तुम्हारी मस्ती की खुमारी में
समाज आनंदित हो उठे। गर्व से कहो हम सच्चे नशेबाज हैं।