जानलेवा बीमारी है दिमागी बुखार

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डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों
के अलावा एक अन्य गंभीर संक्रामक
रोग है मस्तिष्क ज्वर, जिसे जैपनीज
एन्सैलाइटिस भी कहते हैं। आज से
करीब तीस-पैंतीस वर्ष पहले तक इस
रोग का विस्तार ताइवान, चीन, जापान,
कोरिया, पूर्वी साइबेरिया तथा वियतनाम
आदि देशों में ही था। भारत में सबसे
पहले तमिलनाडु में इस रोग से संबंधित
मामले सामने आए।
धीरे-धीरे यह रोग देश के अन्य
भागों में भी फैल गया।
मस्तिष्क ज्वर एक जानलेवा रोग
है जिसका कारण ग्रुप बी अरबो वायरस
होता है। यह रोग मच्छरों के काटने से
फैलता है। इस रोग को उत्पन्न करने
वाला विषाणु मुख्यतः जानवरों में पाया
जाता है। मच्छर जब इन जानवरों का
खून चूसने के लिए इन्हें काटते हैं तो
वे वायरस खून के जरिये मच्छरों के
पेट में पहुंच जाते हैं और वहां
फलते-फूलते हैं। ये जानवर जब
मनुष्य को काटते हैं तो ये वायरस
मनुष्य के शरीर में पहुंच जाते हैं और
रोग उत्पन्न करते हैं।
रोग का यह वायरस मुख्यतः सुअर
में पलता है परंतु वे इस रोग से
प्रभावित नहीं होते। इनके शरीर में जो
वायरस पनपता है उसका संक्रमण
मच्छरों के द्वारा होता है। गाय, भैंस,
घोड़ा आदि जानवर भी इन विषाणुओं
से संक्रमित हो सकते हैं। कई बार
घोड़ों में मस्तिष्क ज्वर के कुछ लक्षण
भी देखे जा सकते हैं। कुछ पक्षी भी
जैपनीज एन्सैलाइटिस से संक्रमित पाए
गए हैं। अभी तक उपलब्ध जानकारी
के अनुसार यह रोग एक मनुष्य से
दूसरे मनुष्य में सीधे या प्रत्यक्ष रूप से
नहीं पहुंच सकता। यों तो यह रोग
साल के किसी भी समय में हो सकता
है लेकिन गर्मी के मौसम में इस रोग
का प्रकोप बहुत बढ़ जाता है। सामान्य
रूप से मस्तिष्क ज्वर के रोगियों की
मृत्युदर 30 से 35 प्रतिशत तक होती
है। परंतु कई बार यही दर बढ़कर 60
प्रतिशत तक पहुंच जाती है।
एक संक्रमित मच्छर द्वारा एक स्वस्थ
मनुष्य को काटे जाने के बाद लगभग
पांच से पन्द्रह दिनों में ही इसके लक्षण
स्पष्ट हो पाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह
है कि संक्रमित मच्छर द्वारा काटे गए
सभी लोगों में यह बीमारी हो यह जरूरी
नहीं है। लगभग 300 से 1000 संक्रमित
व्यक्तियों में से एक के शरीर में इस
रोग के लक्षण विकसित हो पाते हैं।
मस्तिष्क ज्वर के रोगी में अनेक
लक्षण देखे जा सकते हैं। मुख्य लक्षण
यह है कि उसे काफी तेज बुखार आता
है, ऐसे में बहुत तेज ठंड भी लगती है।
साथ ही उसे सिर दर्द, गर्दन में दर्द,
अकड़न, तथा कमजोरी भी अनुभव होती
है। जिन रोगियों में मस्तिष्क और
उसकी झिल्ली भी संक्रमित हो जाते हैं
उन्हें मिर्गी की भांति दौरा भी पड़ सकता
है, ऐसे में वह किसी भी विशिष्ट अंग
जैसे हाथ पैर आदि की कमजोरी का
अनुभव करता है। इस रोग के कारण
रोगी का भार तेजी से घटता जाता है।
धीरे-धीरे बीमारी के बढ़ने के साथ-साथ
रोगी की हालत बिगड़ती जाती है और
वह अचेतन अवस्था में चला जाता है,
अंत में रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।
किसी भी व्यक्ति के संक्रमित होने व
उसमें रोग के लक्षणों के स्पष्ट होने से
लेकर रोगी की मृत्यु तक 0घ्10 दिन
का समय लग जाता है। मस्तिष्क
ज्वर होने के बावजूद जो लोग बच
जाते हैं उनमें लकवा, दौरा पड़ना,
मानसिक अपंगता तथा व्यवहारिक
अनियमितता जैसी समस्याएं पैदा हो
जाती हैं। बड़ों की अपेक्षा बच्चे इस
रोग के शिकार अधिक होते हैं।
मस्तिष्क ज्वर का बचाव ही इसका
इलाज है। इस रोग से बचने के लिए
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है मच्छरों का
नियंत्रण करना। फैनीट्रोथीओन तथा
मैलाथिओन जैसे कीटनाशकों का
छिड़काव मच्छरों के नियंत्रण में बहुत
उपयोगी होता है। जिस गली या मौहल्ले
में मस्तिष्क ज्वर का एक भी मामला
सामने आया हो उस पूरे मौहल्ले तथा
दोघ्तीन किलोमीटर के दायरे में आने
वाले प्रत्येक क्षेत्र में कीटनाशकों का
छिड़काव होना चाहिए।
गांवों में मच्छर सींचे हुए धान के
खेतों, कम गहरे तालाबों, पोखरों तथा
खड़े पानी वाले स्थानों पर पनपते हैं,
ऐसे स्थानों पर मच्छरों की संख्या
नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। चूंकि
गाय, भैंस आदि जानवर भी इस रोग
के वायरस से संक्रमित हो सकते हैं
अतरू जानवरों के रहने के स्थानों पर
भी कीटनाशकों का छिड़काव जरूरी
है। मच्छरदानी का प्रयोग एक अन्य
उपाय है जो आपको इस रोग के
प्रकोप से बचा सकता है।
इस रोग से बचाव के लिए रोग
रक्षक टीके भी लगाए जाते हैं ये टीके
सात से चौदह दिन के अंतर पर लगाए
जाते हैं तथा एक वर्ष के भीतर ही अन्य
बूस्टर टीका भी लगाया जाता है। तीन
साल के बाद इन टीकों को दुबारा
लगाया जाता है। जिन लोगों को इस
बीमारी के होने की बहुत अधिक संभावना
हो उन्हें ये टीके जरूर लगवाने चाहिए।
जैपनीज एन्सैलाइटिस हालांकि एक
संक्रामक रोग है परंतु यदि हम इसके
बचाव पर पूरा ध्यान दें तो इस पर पूरी
तरह काबू पाया जा सकता है।