जिन्हें ठंड बहुत अधिक लगती
है, उन्हें अग्निसार प्राणायाम
का नियमित अभ्यास करना
चाहिए। इसके अभ्यास से ठंड
से काफी हद तक बचाव हो
जाता है। हृदय रोगी तथा
उच्च रव्तचाप से पीडित लोग
इसका अभ्यास न करें।
सर्दी-जुकाम, खांसी तथा फ्लू
से ग्रस्त लोगों को कुछ
सावधानियों के साथ प्रतिदिन
नियमित रूप से इस प्राणायाम
का अभ्यास करना चाहिए।
सर्दी के मौसम में आपको अधिक
सावधान रहने की आवश्यव्ता है। इस
मौसम में बहुत ठंड लगने, सर्दी-जुकाम
होने, खांसी, फ्लू के आक्रमण की
आशंका अधिक होती है। कुछ यौगिक
क्रियाओं के अभ्यास से ऐसे लोग स्वंय
को काफी हद तक सुरक्षित रख सकते
हैं। अगर आप ऐसे लोगों की श्रेणी में
शामिल हैं तो आप भी क्यों न इन
क्रियाओं को आजमाएं।
जिन्हें ठंड अधिक लगती है:
जिन्हें ठंड बहुत अधिक लगती है, उन्हें
अग्निसार प्राणायाम का नियमित अभ्यास
करना चाहिए। इसके अभ्यास से ठंड
से काफी हद तक बचाव हो जाता है।
अग्निसार की अभ्यास विधि
पùासन, सिद्धासन, सुखासन या
कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा
कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों
पर मजबूती से रख लें। आखें ढीली
प्राणायाम आपको बनाएगा स्वस्थ
बंद कर लें, गहरी श्वास-प्रश्वास लें।
अब एक गहरी श्वास मुंह द्वारा बाहर
निकालें।
श्वास बाहर की ओर रोक कर
दोनों हाथों को कुहनियों से सीधा कर
मजबूती से घुटनों पर रख लें। इसके
बाद उदर की मांसपेशियों को अंदर-
बाहर जल्दी-जल्दी फुलाएं- पिचकाएं।
जितनी देर श्वास को आसानी से बाहर
रोक कर रख सकें, पेट को अंदर-बाहर
करते रहें। कोई भी असुविधा होने के
पहले ही पेट को सामान्य कर हाथों को
सामान्य करें तथा श्वास अंदर लें। यह
क्रिया प्रारम्भ में एक-दो बार, फिर
धीरे-धीरे बढ़ा कर 5 से 7 बार करें।
सावधानी: हृदय रोगी तथा उच्च
रव्तचाप से पीडित लोग इसका अभ्यास
न करें। सर्दी-जुकाम, खांसी तथा फ्लू
से ग्रस्त लोगों को कुछ सावधानियों के
साथ प्रतिदिन नियमित रूप से इस
प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
बुखार की स्थिति में किसी भी योग
क्रिया का अभ्यास न करें। अन्य सभी
स्थितियों में नाड़ी शोधन प्राणायाम का
अभ्यास बहुत लाभकारी होता है।
नाड़ी शोधन की अभ्यास विधि
पùासन, सिद्धासन, सुखासन या
कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर सीधा कर
बैठ जाएं। आंखों को हल्के से बंद कर
चेहरे को बिल्कुल तनाव रहित कर
लें। अब दाएं हाथ के अंगूठे से दायीं
नासिका बंद कर बायीं नासिका से
धीमी, लंबी तथा गहरी श्वास अंदर लें।
उसके बाद बायीं नासिका को बंद कर
दायीं नासिका से लम्बी, धीमी तथा
गहरी श्वास बाहर निकालें। फिर दायीं
नासिका से श्वास अंदर लेकर बायीं
नासिका से बाहर निकालें।
यह नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक
चक्र है। प्रारम्भ 12 चक्रों से करें। ध्
ाीरे-धीरे चक्रों की संख्या बढ़ा कर 48
तक कर लें।