(फरहान खान ) हरियाणा के तावड़ू कस्बे के ग्राम डिंगरहेड़ी में परिवार के दो लोगो की हत्याऐं तथा उसी परिवार की दो युवतियों के साथ उन्हीं दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किया। मगर हरियाणा की खट्टर सरकार विधानसभा में ‘कड़वे प्रवचन’ सुनती रही जिसमें नांगे बाबा कह रहे थे कि लड़कियों को जींस नहीं पहननी चाहिये। अक्सर इस तरह के बयान हमारे समाज का हिस्सा बन गये हैं। साथ ही वह जघन्य अपराध जिसे बलात्कार कहा जाता है वह भी समाज का हिस्सा बन गया है। अजीब विडंबना है कि मीडिया में आने और बलात्कार के खिलाब जनाक्रोश पैदा करने के लिये भी बलात्कार पीड़ित को ब्रांड बनना है। दिल्ली की ‘निर्भया’ कांड ने जैसा जनाक्रोश तैयार किया था। वैसा हरियाणा की बलात्कार पीड़ित दो युवतियां अपने परिजनों को खोने के बाद भी तैयार नहीं कर पाई।आखिर क्या वजह है कि टीवी और प्रिंट के लिये निर्भया ‘भारत की बेटी’ है तो किसी के लिये India’s Daughter है मगर हरियाणा के तावड़ू की पीड़िता को मीडिया न तो इंडियाज डाॅटर कह पाई और न ही उनकी आवाज बन पाई। शायद मीडिया के कुछ लोगो को अक्सर ऐसी खबरों की तलाश रहती है जिसमें पीड़ित उच्च वर्ग से हो और अपराधी निचला तबके से आते हो फिर तथाकथित ‘रक्षक’ दल आग में घी डालते हैं। उन्हें इस बात से सरोकार नही रहता कि पीड़ित को न्याय मिले और अपराधी को सजा बल्कि उनका उद्देश्य दूसरा रहता है वे इसके सहारे समुदाय विशेष का खौफ दिखाते हैं ताकि ध्रुव्रीकरण हो सके। चूंकि हरियाणा का मामला उल्टा है इसलिये अक्सर जुबानें बंद हैं, टीवी पर कुछ और ही चल रहा है अखबारों ने भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। और वे तथाकथित रक्षक संगठन तो पूरी तरह मौन ही हैं जिन्होंने ‘लड़की’ का इस्तेमाल करके माहोल खराब कराने की साजिश तक रची हो शायद। ‘बलात्कारियों को फांसी दो’ ऐसी आवाजें किसी भी जानिब से सुनाई दे रही हैं जबकि मामला बिल्कुल दिल्ली से सटे हरियाणा का ही तो है। दो हत्या और दो युवतियों के साथ सामूहिक बलात्कार भी अगर समाज की नींदे नहीं उड़ा पा रहा है, अगर यह अपराध समाज सुधार लोगों के कान पर जूं नहीं रेंगा पा रहा है तो यकीन जानिये आने वाले दिन बिल्कुल भी अच्छे नहीं हो सकते।