चीन-भारत सम्बंध – संपादकीय

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का त्रिदिवसीय भारत दौरा कई मामलों में सार्थक
माना जा सकता है परन्तु सीमा विवाद पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा
जाहिर की गई चिंता पर चीनी राष्ट्रपति ने केवल इतना भर कहा कि जब तक
सीमाएं तय नहीं हो जातीं, तब तक दोनों तरफ से अशांति रहेगी। इसका अर्थ
क्या निकाला जाए कि चीन जो लद्दाख और उŸारी पूर्वी सीमा रेखा पर हमारी
हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा किये है। जमीन छोड़ना नहीं चाहता
और उल्टे और अधिक जमीन चाहता है जो वह बार-बार
अपने देश में नक्शे में बतलाता रहता है। अगर चीन अपनी
बात पर अड़ा रहता है तो उसकी भारत यात्रा का मतलब केवल
यह होगा कि चीन ने अपनी मनमानी चलायी है क्योंकि उसकी
सबसे बड़ी जरूरत भारत का उपभोक्ता बाजार है।
इस बात में दो राय नहीं हो सकती कि आज भारत के
पास विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। वहीं उत्पादन
क्षमता के मामले में चीन दुनिया में अव्वल है। लेकिन उसके पास भारत जैसा
उपभोव्ता बाजार नहीं है। उसे नये बाजारों की तलाश है और अपने पड़ोस में
बसे भारत से अच्छा कौन-सा बाजार उसे मिल सकता है। इसलिए अगर चीन
की जरूरत भारत है तो एक अच्छे पड़ोसी और महाशक्ति के नाते भारत की
भी जरूरत चीन है। अगर भारत और चीन की सीमाओं पर शांति रहती है तो
सेना पर खर्च होने वाला खर्च न हो और वही धन देश की विराट योजनाओं पर
खर्च हो सकता है।
आज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
बड़ी गर्मजोशी से मिले और जिस ढंग के हाव-भाव देखने में आये उससे लगा
कि भारत और चीन दोनों में गहरी मैत्री है। दोनों देशों के बीच एक दर्जन करार
हुए और चीन भारत में 20 बिलियन डालर यानी सवा लाख करोड़ का विनिवेश
कर विभिन्न क्षेत्रों में भारत का सहयोग करेगा। निश्चित रूप से चीन जितना
बड़ा और शक्तिशाली देश है, उसके नेता उतने ही समझ्ादार हैं। जो अपने देश
के हितों के साथ किसी भी प्रकार से कप्रोमाइज नहीं करते हैं। उन्हें शर्म तो
आती नहीं कि एक तरफ चीनी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर हैं, दूसरी तरफ लद्दाख
क्षेत्र में चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में कई किलोमीटर अंदर आकर अपने कैम्प लगा
रही है। आजादी के बाद भी चीन ने कभी हमारी अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं का सम्मान
नहीं किया। वे मुंह से यही कहते रहे ’’ हिन्दी चीनी भाई भाई‘‘ और बगल में
छुरा चलाते हुए 1962 में भारत पर हमला कर दिया और 90 हजार वर्ग किलोमीटर
क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया। यह जमाना पंडित जवाहर लाल नेहरू का था,
भारत उस समय इतना सशव्त नहीं था परन्तु आज हालात 1962 जैसे नहीं हैं।
हमारी बातचीत का नजरिया एक ही होना चाहिए था कि सीमा विवाद हल होने
के बाद ही अन्य करार होंगे, परन्तु करार हो गये। चीनी राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी
को चीन आने का न्यौता दिया जिसे नरेंद्र मोदी ने स्वीकार भी कर लिया। जब
नरेंद्र मोदी चीन जाएंगे, तब उनका भी जबर्दस्त स्वागत होगा। चीनी नेता प्रदर्शित
करेंगे कि वे भारत के प्रधानमंत्री को विश्व का सबसे बड़े नेता के रूप में सम्मान
दे रहे हैं और सीमाओं पर तकरार वैसी ही बनी रहेगी। यह बात किसी से छिपी
नहीं है कि चीन एक विस्तारवादी देश है उसे अपनी जनसंख्या के लिए जमीन
की जरूरत है और जमीन पड़ोसी भारत की उसे छीनने की आदत बन गई है।
जबकि भारत केवल इतना चाहता है कि 1962 के बाद जो सीमा रेखा बनी थी
दोनों देश उस पर कायम रहे परन्तु चीन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा।