अरब सागर के बीच 19वीं सदी के पूर्वार्ध में बनी मुंबई की प्रसिद्ध हाजी
अली दरगाह जमीन से 500 गज दूर समुद्र में स्थित है। यह दरगाह हिंदुओं
और मुसलमानों ही नहीं बल्कि
अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी
समान रूप से आस्था और विश्वास
का केंद्र है। दरगाह तक पहुंचने
के लिए एक छोटा सा पगडंडीनुमा
रास्ता है जिसके जरिए तभी जाया
जा सकता है जब समुद्र में ज्वार
न हो वरना रास्ता पानी में डूब
जाता है। रात्रि में दूर से देखने
पर इसका नजारा इतना दिलकश होता है जैसे हाजी अली की दरगाह और
मस्जिद का गुंबद समुद्र की लहरों पर तैर रहे हों।समुद्र में बने संकरे रास्ते से
यहां पहुंचने पर प्रवेश द्वार है जिसके भीतर मार्बल का बना गलियारा और कक्ष
है। इसमें रोजाना हजारों श्रद्धालु अपना सिर नवाने और अपनों के लिए दुआ
करने आते हैं। ठीक सामने ही चारों ओर चांदी के फ्रेम से युक्त हाजी अली की
दरगाह है जिस पर खूबसूरत लाल और हरी चादर चढ़ी रहती है। इसके चारों
ओर मार्बल के खंभे हैं जिन पर नीले, हरे और पीले कांच के टुकड़े अरबी शैली
में बड़े खूबसूरत अंदाज में जड़े हुए हैं। ये अल्लाह के 99 नामों को दर्शाते हैं।
यहां के संपन्न मुस्लिम व्यवसायी हाजी अली के अनुयायियों ने इस दरगाह
का निर्माण उनकी स्मृति में 19वीं सदी के पूर्वार्ध में करवाया था। दंतकथा के
अनुसार, हाजी अली उन दिनों हज के लिए मक्का गए थे मगर वहीं पर उनका
देहांत हो गया। कथा के अनुसार, उन्हें वहीं दफन कर दिया गया था मगर समुद्र
की लहरों पर उनका शव तैरता हुआ यहां आया जहां इस समय दरगाह है।
अनुयायियों ने बाद में हाजी अली की स्मृति में इस दरगाह और मस्जिद का
निर्माण करवाया।