राजनीति में कोई सफलता स्थाई नहीं

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जहां सफलता है उसके साथ
असफलता भी है। जीत के साथ हार
भी है। जीत और हार लगी रहती हैं।
आज रिकार्ड मतों से जीतने वाला कल
वैसे ही हार भी सकता है। राजनीति में
जीत के लिए कोई स्थाई गणित या सूत्र
नहीं होता है और कभी कोई सफलता
स्थाई नहीं होती। केंद्र मंे बड़ी सफलता
के साथ सरकार बनाने वाली भाजपा
अपने सत्तारोहण के कुछ माह भीतर ही
उत्तराखंड के बाद अब कई राज्यों मंे
विधानसभा चुनाव हार गई। इसके साथ
ही राजनीति में अब भूत, भविष्य एवं
वर्तमान के लिए नए सिरे से कयास
लगने शुरू हो गये।
भारतीय राजनीति में किसी भी
घटना के बाद समीक्षा, मीमांसा, आलोचना
समालोचना का लंबा दौर चलता है।
उसको कई पहलुओं से उलट- पलट
कर देखा परखा जाता है। हारने या
असफल होने वाला कभी अपनी गलती
नहीं देखता। वह इसके लिए दूसरे पर
ही दोषारोपण करता है। लिहाजा
विधानसभा उपचुनाव परिणाम के संदर्भ
में यह अकाट्य सत्य है कि लोकसभा
चुनाव में बड़ी सफलता एवं केंद्र मंे बड़े
तामझाम में सरकार बनाने वाली भाजपा
अपने सत्तासीन होने के कुछ माह भीतर
ही राज्यों के विधानसभा उपचुनाव में
अपने विरोधियों के हाथों हार गई।
भाजपा की हार के पीछे तर्क यह है कि
उसने चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया।
इसी क्रम में कुतर्क यह है कि भाजपा
ने विरोधियों को वाक ओवर का मौका
दिया। विधानसभा की बची अवधि के
लिए यह चुनाव होने के कारण उस पर
ध्यान नहीं दिया। वह तो हरियाणा,
महाराष्ट्र, झारखंड एवं जम्मू कश्मीर के
लिए होने वाले विधानसभा चुनाव को
गंभीरता के साथ लड़ेगी और जीत
हासिल कर वहां अपनी सरकार बनाएगी।
हारने के सत्ंय से सिर छिपाने से भाजपा
बच नहीं पाएगी। सत्य तो हमेशा सत्य
रहता है। वह अकाट्य एवं कड़वा होता
है इसलिए हारने वाला सत्य को न
स्वीकार कर उससे टाल-मटोल करता
है। भाजपा जिन नई विधानसभाओं के
आगामी चुनावों का हवाला दे रही है वह
चुनाव मात्रा चार माह के भीतर होगा,
तब भाजपा की इस दलील की परीक्षा
भी जाएगी।
सम्पन्न विधानसभा के उपचुनाव
परिणाम से बिहार मंे महागठबंधन से
जुड़े दल राजद, जदयु एवं कांग्रेस को
नवजीवन मिला एवं आगामी चुनावों में
गठबंधन की राजनीति को नया मार्ग
मिल गया। हरियाणा , महाराष्ट्र, जम्मू
कश्मीर एवं झारखंड में आगामी
विधानसभा चुनाव से पूर्व नए गठबंधन
की चर्चा होने लगी। लोकसभा चुनाव
में शर्मनाक हार का सामना करने वाली
पार्टियां इस पर ज्यादा उत्सुक दिख
रही हैं। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह
यादव तो पहले से ही उतावले हैं। अब
कांग्रेस एवं अन्य भी इसी मार्ग में आगे
बढ़ रहे हैं। भाजपा को विधानसभा
उपचुनाव में शर्मनाक हार के सच को
स्वीकारना होगा। लोकसभा चुनाव के
समय भाजपा को उत्तरांचल अर्थात
उत्तराखंड में बड़ी सफलता मिली जहां
वह विधानसभा उपचुनाव में सभी सीटें
हार गई और उन सीटों पर कांग्रेस
कामयाब हो गई। बिहार में भी ऐसा ही
हुआ। लोकसभा चुनाव में कामयाबी के
झंडे गाड़ने वाली भाजपा बिहार के
विधानसभा उपचुनाव में राजद, जदयु,
कांग्रेस महागठबंधन से हार गई। मप्र
एवं पंजाब में जहां उसकी सरकारें हैं,
वहां भी एक एक सीट हार गई। भाजपा
को सभी स्थानों पर पराजय का सामना
करना पड़ा।