
हर बार छली जाती हूँ,
अपनी पीड़ा बिसराकर,
पीड़ा तुम्हारी हरने लगती हूँ ,
कारण एक ही है मै नारी हूँ !
सत् मे सिर्फ तुम्हारे ………
कारण यम से भीड़ी हूँ,
त्रेता मे अग्निपरीक्षा से गुजरी हूँ,
द्वापर मे छलिया से छली हूँ,
सदियो से छलते आए हो…….
कभी मान मर्यादा का नाम देकर,
कभी पति धर्म की सीख. देकर,
जैसे तुम्हारा तो कोई धर्म ही नही ..
सारे बंधन , सारी बेड़ियां मेरी…..
फिर भी तुम्हारे मोहपाश मे बंधी हूँ,
कारण एक. ही है मै नारी हूँ !!
पर पुरूष से बात करते आज भी कतराती हूँ,
आँंखों मे शर्म ह्रदय मे हया रखती हूँ ,
ग़र बहुं धारा के विपरित……………तो
कुलटा कहलाती हूँ ………………,
कारण एक ही है मै नारी हूँ !!!
छूट गया नारीत्व जिस दिन ,
टूट गया मातृत्व जिस दिन .
सांसों की प्रचण्ड ज्वालाओं से
भष्म हो जाएगा तुम्हारा अस्तित्व
न रहेगा फिर कुछ शेष………
खण्ड खण्ड हो जाऐंगे तुम्हारे..
बनाऐ हुए. बंधन…………..
फिर मत कहना मै नारी हूँ !!!!