इंदिरा कुमारी – नारी/महिला – साप्ताहिक प्रतियोगिता

चलो लेखनी आज इतिहास पुनः दुहराऐं,शक्ति की प्रतिमूर्ति को विश्वास संग जगाऐं।ये अभिशाप नहीं समाज की संसार को बताऐं,है जननी यह सृष्टि की सर सम्मान संग झुकाऐं।
उठें फिर नवजोश संग नवचेतना जगाऐं,श्री गणेश कर माॅ सीता संग प्रेरणा जगाऐं।वह कौन थी यहां जो पंचकन्यां कहलाई,अहिल्या, तारा ,मंदोदरी ,कुन्ती संग द्रौपदी आई।
धन्य थी मां सीता आदर्श स्थान पाई,सत्य को चरितार्थ कर धरती में समाई।सावित्री का भिरंत यम से प्रकृति को थर्राया,दिलाकर प्राण सत्यवान का इतिहास नया रचाया।
युग युग पर कहर अब जब जब भरमाया,उठा तलवार नारी ने तब तब ललकारा।उतर आई रानी लक्ष्मीबाई फिरंगी अब थर्राया,देख वीरता वीरांगना की हृदय उसका घबराया।
वीरांगना की कथा की गाथा अनंत गाऐं,राजनीति संग खेल व विज्ञान जगत जाऐं।प्रधानमंत्री इंदिरा, वैज्ञानिक कल्पना चावला आई,सानियां, सिन्धु ,साक्षी ओलंपिक विजय पाई।
कर्तव्य यह स्त्रियों का शक्तिशालिनी बनाएफिर भी प्रताड़ित हैं व्यथा इनकी सुनाऐं।अपने रक्तों से सींचित कर ये सृष्टि बढ़ाती,जलती हुई दीपक सी जैसी सजा पाती।
जिसके उजालों से दुनियां उॅजियारा है,त्याग की है यह मिसाल जिसके तले अंधियारा है।इतना कर अंत करुं विनती मेरी एक है,बचा लें इसे बुरी नजर से प्रभावित हरेक है।