
चलें जीवन का रहस्य हम समझें पति-पत्नी का कर्तव्य हम समझें।
है कैसा अनुबन्ध उनका जोड़ दिया सम्बन्ध सबका।
परिणय सूत्र बन्ध बनते दम्पति स्वागत करती तभी संतति।
बन मातु पिता गर्वान्वित होते सभ्य समाज व्यवस्थापित करते।
पति-पत्नी से शुरू होती जिन्दगी संग चले, है कर्म यह बन्दगी।
हैं पहिये ये एक हैं धुरी मिलकर चलाते जीवन गाड़ी।
है आसान पति-पत्नी बनना कर्तव्य कठिन है इसे निभाना।
लम्बा सफर जीवन का होता सुख-दुख मिलकर है यह कटता।
हों दोनों में असीम उर स्नेह न हो कभी अविश्वास संदेह।
रहे प्रेम विवेक संग साथ हो न इसमें विश्वासघात।
होते पति-पत्नी जब पूरक एक दूसरे के सहायक।
कार्य में होती तभी कुशलता मिलती जीवन में सफलता।
है विवाह संस्कार धर्म कर्म उसका व्यवहार नियम।
बचाकर साख बनें संस्थापक होगा समाज तभी व्यापक।