
कितने मासूम होते है सैनिक ,
मरते है अपने वतन पर,
सर कटवाते है, आंखें नुचवाते है,
गोली खाते है।
मां की गोद सूनी कर जाते है,
दे जाते है बहिन को आंसू
और,
और पत्नी को वियोग का श्वेत वस्त्र ।
पर किसलिए ?
क्या इसलिए कि –
भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबे कुछ सफेदपोश लूट सके अपने देश को,
या इसलिए कि –
उच्च पदो पर आसीन वो अफसर ,
जो अपनी सौ पुश्तो को सुरक्षित कर जाते है।
या
या उन गुण्डो के लिए ,
जो कितनी सीताओं का हरण
और
द्रोपदियों का चीरहरण करते है।
और छूट जाते है चंद कोडिया उछाल कर न्याय के मुंह पर,
न्याय के व्यापारियों के मुंह पर।
क्या इसलिए सैनिक मरता है सीमा पर ?
क्या इसलिए सैनिक मरता है सीमा पर कि-
आलीशान आश्रमों का मालिक ,
कोई बाबा अपनी ही बेटी ,
अपनी ही शिष्या के आंचल पर हाथ डाले,
और शान से किसी लाल बत्ती लगी गाड़ी मे घूमे?
क्या इसलिए ?
सिर्फ इसलिए मरता है सैनिक ?
काश !
काश कोई होता –
जो मरता तिरंगे मे लिपटे उस शव पर,
मां की लोरी पर,
बहन की राखी पर,
या
या अपाहिज बाप की लाठी पर।
काश…………….काश…………..