डॉक्टर रेनू पुरी – नारी/महिला – साप्ताहिक प्रतियोगिता

नारी का जीवन एक अजूबा है।
बचपन पिता की छत्रछाया में बिताया,
किशोरावस्था भाई के संरक्षण में बिताया,
यौवन, पति का जीवन महकाया।
जीवन गंगासा निर्मल हो गया,
जीवन शांत व शीतल हो गया,

नारी पथभ्रष्ट होने से संभल,
आंखें खोल नीति पथ पर चल।
उठ नारी सम्भल नारी,
अपने अस्तित्व को सम्भाल नारी,
अपना सम्मान प्राप्त कर नारी,
धीर-वीर कल्याणार्थी हो नारी।।

त्याग, ममता और बलिदान का जीवन,

बचपन से लेकर मृत्यु- पर्यंत ये जीवन,
पुरुष जाति पर निर्भर नारी का जीवन,
अंत में पुरुष जाति पर ही बीता जीवन।।

चार पुरुषों ने ही अर्थी उठाई,
पुत्रों ने मिलकर चिता जलाई,
शमशान भूमि पर ले गए परिजन,
आदर पूर्वक चिता सजाई।।

लोग दुखी भावना से भाव प्रकट कर रहे थे,
पति दुखी, बच्चों की आंखें नम हो गई,
अब एक आत्मा शांत हो गई,
कई यादें जीवन की छोड़ कर चली गई।।

बचपन से लेकर मृत्यु- पर्यंत ये जीवन,
पुरुष जाति पर निर्भर नारी का जीवन।।