डॉ चन्द्र दत्त शर्मा – नारी/महिला – साप्ताहिक प्रतियोगिता

मैं नारी हूं !मैं नारी हूं !!
मत समझो बस बेचारी हूं
कोई कहते मुझे कटारी हूं
कोई कहता कि लाचारी हूं
मैं नहीं अरि इसलिए नारी
खामोश अदालत है जारी ।

क्यों समझ लिया मुझे परपोषी ,
क्या अपराध मेरा हूं क्या दोषी
है लज्जा -शीलता हार मेरा,
सहनशीलता श्रृंगार मेरा
क्या इसीलिए मैं नोची हूं,
बहला-फुसलाकर दबोची हूं ।

माना तुमने मैं कोमलांगी मैं
अबला- सी और एकांगी मैं
मैं उतरता हुआ एक चीर हुई
और गंगा से -गंदा नीर हुई
प्रशंसा नहीं तुम्हारी लोलुपता थी
अहम द्वार लूटी मेरीअस्मिता थी।

तुम नर से- नरभक्षी हो गए,
बुलबुल नोचते गिद्ध पक्षी हो गए
तेरे मुखोटे का शिकार हुई तेरी
तेरी चाहत का मैं श्रृंगार हुई
जब चाहा घर से बाहर हुई
हर बार लाज तार -तार हुई।

मैं गगन चीरती सुनीता हूं !
मैं आकाश नापती कल्पना हूं
मैं सदा ही सब पर भारी हूं
अब दहकती एक चिंगारी हूं
हां प्रलय की तैयारी हूं
मैं नारी हूं -मैं नारी हूं ।