दीपक अंनंत राव – जन्म मृत्यु – साप्ताहिक प्रतियोगिता

जनन और मृत्यु; जीवन की दो झोर, जीवन का दो सत्य၊ जिनके बिच, जो पनपते है, उसे दुनिया जिन्दगी कहते, जो जीवन की सुंदर संज्ञा है ၊ पता नहीं किस ज़माने में इन शब्दों का उदय हुआ, किसने इन्हें संस्कृति से जोड़ा और पुकारा, दुनिया में ऐसे कुच्छ तथ्य है, जो दुरूह होकर अपने रूप में, उदात्त सौन्दर्य निकालता है,. अपना आस्तित्व बनाके रखता है, और साथ साथ उसका समाघान ढूँढने मज़बूर करा देता है၊ जीने-मरने-मिटने का जो जशन है, जीवन-मृत्यु की यही तालूकात၊၊ जन्म,अपना आस्तित्व खोजता है, तो मृत्यु अपने अहंबोध का परिचायक बनता है၊ कोख की दुआ हर पीढीयों के लिए, लोरियाँ लाती है तो मृत्यु की परिभाषा पीढ़ियों को, अपने बलबूत्ते तैयार कराती है। इसलिए जन्म- मृत्यु की असली परिभाषा इस पवित्र धरती पर कभी संभव नहीं၊ अगर संभव हो तो भी अधूरा सही၊၊ यह एक नितान्त प्रक्रिया है, जिनका खोज संत -ऋषि परंपराओं से चलकर एक ऊर्जा बनकर बहकर आती है, हर एक अपनी क्षमता से जिसकी व्याख्या भी कर रहे है। फर्ज निभाकर, जब वो दोबारा किसी माँ के कोख में जाते, तब वह एक इंसान,फरिश्ता एक महान,पंडित,मूर्ख,एक गुणेगार,एक घोखेबाज़ एक कवि,साहित्यकार, एक राजनीतिज्ञ,,, पहली साँस से , आखरी सास तक जब वह जीते मरते है, तब, ज्ञानी फरमाते है कि जन्म और मृत्यु, शुरुवात की एक सुनहरे बिदु,,,